kanaram makwana 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक औसर कुप्रथा 7914 0 Hindi :: हिंदी
सदियो से चलती आ रही आज भी वह चलती है जिसने बहुतो को लूटा औसर है वह कुप्रथा जब किसी का देहांत होता तो सबको पहले औसर दिखता वह नही देखता घर उसका उसको को तो पकवान भाता उस परिवार समाज का घाटा इससे उसकी देश का भी घाटा किसी को नही इससे फायदा क्यों चला रहे हम ऐसी प्रथा हम ना करे कुप्रथा का समर्थन मन मे इच्छा कुप्रथा का समापन एक अकेला नही कर सकता यह इसमे चाहिए सबका साथ