Anil Mishra Prahari 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Rahi Chal 28652 0 Hindi :: हिंदी
दीन-हीन की बस्ती से चल पीर चुराने। मैं दुखियों की कलम दर्द है मेरी भाषा, अश्रु हमारे शब्द करुण मेरी परिभाषा। मैं जन की पीड़ा को ह्रदय लगाता हूँ उनके स्वर में गीत व्यथा का गाता हूँ , उजड़े दिल के तारों पर लय नव्य सजाने दीन-हीन की बस्ती से चल पीर चुराने। सजल नयन के अश्रु सहज ही चुन लेता, कहें या न वे कहें रुदन मैं सुन लेता। परछाई बन उनका साथ निभाता हूँ उनके अश्क बहे, मैं बह-बह जाता हूँ , पहचाने कुछ दर्द, कई अब भी अनजाने दीन-हीन की बस्ती से चल पीर चुराने। मजबूरी कैसी भी उनकी मैं हर लूँ , ले उनका परिताप मगन उर भी भर लूँ। इसीलिए व्रण उनका मैं सहलाता हूँ बन पावस-सीकर मैं प्यास बुझता हूँ , चलो,समय के मारों को मिल गले लगाने दीन-हीन की बस्ती से चल पीर चुराने। Anil Mishra Prahari.
Anil did his M.A in Economics and also wrote three Hindi poetry books naming "PHAHARI" , "RAHI CHAL"...