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भेदों की मूर्खता

Saurabh Sonkar 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक जब बिजली पानी एक है, धरती भी सबकी एक है, 89810 0 Hindi :: हिंदी

भेदों की मूर्खता
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जब बिजली पानी एक है,
धरती भी सबकी एक है,

न चांद सीतारें अलग यहाँ,
सूरज भी कहाँ अनेक है,

न अग्नि करती भेद यहाँ,
न वायु में है खेद यहाँ,

मानव हर जगह का नेक है,
बस धर्म ने उसको बाँटा है,

धरती पर सबसे बुद्धिमान तू है ,
कैसे मै तुझको मानूँ यहाँ,

जब प्रकृत ही सबका दाता है,
कुद़रत न करता भेद यहाँ,

तूने तो  मतलब के लिए,
भगवान भी खुद का बाँटा,

कर रंगों में भी भेद यहाँ,
तू अपना रंग दिखाता है,

मकड़ी मेरी गिद्द है तेरा,
कैसी मूर्खता बतलाता है,

हर चीज को तुमने बांटा है,
यह धर्म तुम्हें सिखलाता है,

तूने तो मतलब के लिए,
अपने सब नियम बनाए हैं,

सबका अपना है सत्य यहाँ,
कैसी ये मिथक कथाएं हैं,

खून तो सबका एक ही जैसा,
पर धर्म-जाति ठप्पा लगाएं हैं,

जन्म है सच्चा मृत्यु है सच्चा,
बाकी सब मिथक कथाएं है,

तू अपनी ठसक बनाए रख,
कर्मों पर नजर गड़ाए रख 

मत करना कभी तू भेद यहाँ,
मानवता तनिक बनाए रख,

मानव की इसी शिथिलता में,
चेतनता तनिक जगाए रख,

हल्की -सी अलख दिखाई है,
तू दीपक की ज्योति जलाए रख,

न जीवन में नीरसता छाने पाये,
'सौरभ' को तनिक बनाए रख,

पैसे का सारा खेल यहाँ,
तू रिश्ते भी तनिक कमाए रख,

हर चीज का कुछ है मोल यहाँ,
तू अपना महत्व बनाए रख,

नकारात्मकता ना हावी होने पाये,
आशा की किरण जगाए रख,

सत्य अगर है राह तेरी,
तू अपनी डगर बनाए रख,

एक दिन भी होगा मोल तेरा,
तू अपनी ठसक बनाए रख ,,,,
__________________
✍️ ✍️✍️
सौरभ सोनकर
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