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जहां चाह वहां राह-ईच्छा चाहत्त उम्मिद‌ कामना

Amit Kumar prasad 07 May 2023 कविताएँ अन्य This poem is one of the best motivation to the way of Success and during this poem in place to place see the morality of hard work. This is very importaint theme of this poem that Where need there way. For this, You should take enjoy to this poem. Jai Hind. 11371 0 Hindi :: हिंदी

ईच्छा, चाहत्त, उम्मिद‌, कामना, 
मिलत्तें मंज़ील पथ‌ डगर - डगर! 
पथ भ्रमर‌ - भ्रमर हर राहों के, 
सफ़लत्ता खिलत्ती संघर्षों पर!! 
                      हर दृश्य, दिवश और दिशा, धाम, 
                      चाहत्त लाखों मिल ज़ात्तें हैं! 
                    ‌  पथ‌ - पथ ज़ो‌ चलें श्रम धार‌ - धार, 
                      हर पथ‌ पे‌‌ राह पा जात्ते‌ हैं!! 
चल - चले चलों को विचलीत्त कर, 
कर‌त्तें ही चले हम कर्म प्रबल! 
फिर चल‌ - चल‌ के चलत्ते - चलत्ते, 
मंज़ील खुद‌‌ राह दिखात्ती है!! 
                       है‌ चाह वृहद और मार्ग विरल, 
                       और प्रत्तीबन्ध हो लाख भले!
                       पर चलने कि चाह गर अचल - अज़र, 
                       ईच्छा ही राह बनात्ती है!! 
ये प्रत्तीबन्ध और रोध राह के, 
मंज़ील कि चाह संवारा है!
गर चाह विज़य हो अतुल्य आन्नदित्त, 
त्तो चलना काम त्तुम्हारा है!! 
                         ये सारे बन्ध, प्रत्तिबन्ध राह के, 
                         मंज़ील कि चाह बढ़ात्ती है! 
                         हर राह होत्ता है सहज़‌, सुगम, 
    ‌‌‌‌       ‌‌‌‌‌              ईच्छा ही राह दिलात्ती है!! 
अचलों में अज़र‌ कर मान श्रम का, 
कर्मवीर बन जा!
पथ लग्न, परिश्रम,निष्ठा, त्तनम्यत्ता, 
अज़ी..ज़हां‌ चाह वहां राह!! 
                         है चाह अगर त्तो अगम - सुगम, 
   ‌‌‌‌‌‌‌                      ईच्छा से पाहन‌ - निर बने! 
     ‌‌‌‌‌‌                    बन‌ आयन चलत्ता नगर - नगर, 
                         संघर्ष पथों पर वीर बने!! 
विद्या, विद्वत्ता, बाहुबल, 
विफ़ल है बिना संघर्षों के! 
ज़हां चाह वहां राह मिलेगी, 
ये प्रामर्ष अदृढ़ आदर्शों के!! 
                          चल - चल‌ मंज़ील पथ थाम उसे, 
    ‌‌‌‌‌‌                      ना रूक बस चलत्ता जा! 
                          सफ़लत्ता कि ये प्रम कत्थय, 
                          हां‌.. ज़हां चाह वहां राह!! 
पथ‌ - पथ‌ ज़ो‌ प्रेम कि प्रभा द्विप, 
मंज़ील कि प्रभा हर पथ‌ - पथ‌ पर! 
ईच्छा, चाहत्त, उम्मिद‌, कामना, 
मिलत्तें मंज़ील पथ‌ डगर - डगर!! 
                           मिलत्ता न कुछ बिन श्रम यहां, 
                           मेहनत्त बिन समिर‌ न‌ पंखो से! 
      ‌‌‌‌‌                    ईच्छा मंज़ील का महा रथी! 
                          ये ज्ञान प्रम है संत्तों के!! 
गर मिलत्ता हार ईक बार हमें, 
फ़िर करना वही दोबारा है! 
गर पाना है‌ त्तो करना‌ है, 
हां.. चलना काम हमारा है!! 
                   ‌‌‌‌‌      ज्यों जलत्तें द्विप‌ आंधियों मे, 
                         हर हार उसी से हारा है! 
         ‌‌‌                गर पाना है त्तो चलना‌ है, 
       ‌   ‌‌               बस चलना‌ काम‌ हमारा है!! 
पथ‌ ईच्छा के मंज़ील है सहज़‌, 
है‌‌ प्रभा प्रबल आदर्शों कि डगर! 
पथ भ्रमर‌ - भ्रमर हर राहों के, 
सफ़लत्ता खिलत्ती संघर्षों पर!! 

कवी    :  अमित्त कुमार प्रशाद
Poet  :  Amit Kumar Prasad..🌧

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