संदीप कुमार सिंह 11 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 3274 0 Hindi :: हिंदी
(मुक्तक छंद) पहले जैसे अब कहां,पानी हवा जुगार। मिले मिलावट में सभी,छीने पर अधिकार। चौधरी बनकर तब चले,और दिखाए रोब_ भरे खजाना खूब ही,बड़ा करे आकार। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....