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काले बादल

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #Rambriksh kavita #ambedkarnagar poetry #Kale Badal kavita Rambriksh #badal per kavita 64941 0 Hindi :: हिंदी

कविता -काले बादल

मौसम बरसात की
चांदनी रात थी
चमकते तारों में
सजी धजी चांद
की क्या बात थी,
देख रहा था मैं उसे
उसके चमकते शान को
गरिमा और सम्मान को
जग जाहिर थी
ज्योत्स्ना उस रात की,
देखा अचानक घेरता
दानव सा काले मेघ को
मानो डरा सहम चला था 
चांद देख उस काल को
धीरे धीरे ढक लिया
चम चम चमकते चांद को
चांद भी ऐसे छिपा
मानो कांपती गात थी,
चांद यूं गायब रहा उन
सघन घनेरे मेघ में
बांध कर रखा हों जैसे
कर लिया हो कैद में 
लाचार बेबस बधा हुआ
जंजीर में उस रात की,
देखते ही देखते 
देखा समय बदलाव को
बांध पाया है कौन
समय के रफ्तार को
छट गये बादल घनेरे
फिर चमक थी चांद की,
देख कर पाया समझ कि
वक्त का सब खेल है
छट जाता है गम का बादल
फिर होता सुख का मेल है 
चक्र चलता है समय का
मिट जायेगा तम घनेरा
धैर्य धर लें चांद सा बस
जीवन जी लें आज की,
छट गये बादल घनेरे
फिर चमक थी चांद की,


रचनाकार-रामवृक्ष,अम्बेडकरनगर।  

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