Sudha Chaudhary 21 Jul 2023 कविताएँ अन्य 10601 0 Hindi :: हिंदी
मेरे इस भोले मन में क्यों छवि बसी है तुम्हारी। सांसो की डोर न टूटे टूटे ना यह लगन तुम्हारी। बात किसी की होती है तुम आ जाते हो। आंखें कुछ बोल रही हो तुम छा जाते हो। आज तुम्हारी यादें हैं तुम पास नहीं हो। दूरी के इस समय का कब होगा अंत होगा भी या हम न रहेंगे जीवन के संग। आशा तो सताती रही आंखें दिदक्षा मैं तड़पती रही हदय धड़कनों से मचलता रहा। कोई नींव होती तुम्हारे लिए कोई रंग होता तुम्हारा दिया जलता शीघ्र समय का दिया जो हमारा मिलन भी होता कहीं तो। तुम्हारे बिना है अधूरी कथाएं रुचता नहीं दिन न सांझ भाये खोए हुए शब्दों के साए कविता में मेरी सिमट ने लगी है। जोड़ा था जिसको लगन से तुम्हारी टूट टूट के बिखरने लगी है। आंसुओं की धारा बहे जा रही है मन से व्थाये ना कह पा रही है। मरूभूमि से जड़ हो गई हूं सुधा ना तुम्हारी बन पा रही हूं। किसी ने गरल मिला ही दिया पीना नहीं भी पिए जा रही हूं। सुधा चौधरी बस्ती