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ज्ञानी कौन है ?

Gunjesh Sharma 30 Mar 2023 कहानियाँ अन्य ज्ञानी कौन है, | गूँजेश शर्मा blog | 63446 0 Hindi :: हिंदी

ज्ञानी कौन है?

       ये प्रश्न हमेशा से ही बुद्धिजीवी वर्ग के लोगो मे  उठता रहा है।
एवं बुद्धिजीवी वर्गके लोग ज्ञान को ही सबकुछ मानते है। और हर इक इंसान ज्ञानी बनना चाहता है। और ज्ञान पाकर ही वह बुद्धिजीवी वर्ग के सीमा में आता है।
लेकिन प्रश्न ये आता है कि
आख़िर ज्ञानी बनने से  पहले ये जानना जरूरी है
ज्ञान क्या है?
क्या शब्द ही ज्ञान अगर शब्द न हो तो ज्ञान नही रह पायेगा ! नही ये केवल एक भ्रम है। हम जरा पीछे जाकर ये सोचे कि जब इंसान इस पृथ्वी पे आया होगा तब वह शब्द लेकर नही आया । यहां आकर इसने शब्द को जाना शब्द निर्माण किया।
तो एक बात तो जाहिर है कि शब्द को ज्ञान बनाता है ।
इंसान के अंदर ज्ञान हुआ और उसने शब्द रचना की ,तो इस बात से साफ जाहिर होता है कि शब्द ज्ञान नही है बल्कि ज्ञान शब्द बनता है या बनाता है।
फिर यह प्रश्न दुबारा आता है कि आख़िर


   ज्ञान क्या है?
वैसे तो कई लोगो द्वारा कई तरह से इसको परिभाषित किया जाता है लेकिन फिर भी
ज्ञान वो तत्व है ,जो न किसी को उधार लिया जा सकता है न एक हाथ से दूसरे हाथ मे दिया जा सकता है। बस इतना ही काफी नही है इसको समझने के लिए।
हम एक कहानी के माध्यम से इसको समझने की कोशिश करे तो हमे सारी बात समझ मे आ जायेगी।

         एक नवयुवक एक ऋषि की कुटिया में आया ताकि वो यहां ज्ञान,ध्यान कि बाते समझ सके। वो करीब वहां पन्द्रह दिन रुका। लेकिन उस कुटिया के जो ऋषि थे वो रोज़ उसको एक-दो बातें बताते और हर दिन उसी बताई हुई बातो को दुहरा कर चले जाते।
ये सब देख कर उस नवयुकवक के मन मे प्रश्न आया और वह सोचा कि इस गुरु (ऋषि) को कोई ज्ञान नही है इस पंद्रह दिन में उसने मुझे बस एक- दो बात ही दुहराई है। और उसने ये निश्यच कर लिया कि अब वह यहाँ नही रुकेगा और अगली सुबह ये कुटिया छोड़के चला जायेगा।
तभी उसी रात को उस ऋषि के कुटिया में एक और नया युवक आया। उसने आते है धर्म की काफी बाते बोली उसने गीता,वेद,उपनिषद सभी की बाते बोली सब पर उसने चर्चा किया। ऐसा लग रहा था कि उसको सब पहले से मालूम हो।
ये सब देख कर उस पन्द्रह दिनों से रह रहे नवयुवक ने सोचा इस ऋषि से ज्यादा ज्ञान तो आज के आये हुए इस नवयुवक में है जो कि यह हमारे गुरु से भी ज्यादा जानता है।
करीब करीब दो घण्टे तक उस नए आये हुए नवयुक ने बाते की फिर उसने उस कुटिया के ऋषि से कहा आपको मेरी सारी बात कैसे लगी।
क्या मुझे अभी भी ज्ञान की कमी है?
फिर इसपर जो ऋषि ने जवाब दिया वो सुनने लायक थी।
उस ऋषि ने कहा तुम 2 घण्टे से सबकुछ बोले लेकिन तुम क्या बोले ये बताओ मुझे।
युवक ने कहा मैं क्या बोला; आख़िर दो घण्टे से तो मैं ही बोल रहा हु।
इसपर उस ऋषि ने कहा झूठ: दो घण्टे से तुम कुछ नही बोले तुम 2 घण्टे में गीता बोले,वेद की  बाते बोले ,तुम्हारे अंदर से उपनिषद बोला लेकिन तुम कुछ नही बोले।
अगर मैं तुम्हारे अंदर के सारे गीता वेद को निकाल दु तो तुम क्या जानते हो ये बताओ?
तुम बस शब्द बोल रहे थे और शब्द कोई ज्ञान नही है।
तुम तोते की भांति सारी गीता ,वेद ,ग्रंथ अपने अंदर कंठस्थ कर के उसी को बोलते हो।
लेकिन तुम क्या हो? इन सब ज्ञानो में तुम्हारा क्या ज्ञान है? इन सारी बातों में तुम्हारी कौन बात है ये बताओ मुझे?
इसपर उस युवक के पास कोई जवाब नही रह गया।

आजकल हमारे समाज मे सारी इसी तरह की शिक्षा है और हम सबको ज्ञानी समझ बैठे है।
किसी के अंदर विज्ञान की बाते बोलती है,किसी के अंदर गणित बोलता है सब एक दूसरे से सिख कर इधर की बाते उधर कर रहे है।
बस शब्दो की फेका फेकी चल रही है।
जब ये हर कोई जानता है कि ज्ञान न उधार लिया जा सकता है और न इसको एक हाथ से दूसरे हाथ दिया जा सकता है फिर कोई किताब से कुछ सीखकर उसको याद करके तोते की भांति कैसे ज्ञानी बन सकता है।
लेकिन वास्तविक ज्ञान क्या है हमलोग ,हमारी सभ्यता ,हमारा समाज आज भी इसके पड़े है।
और हम झूठा ज्ञान को वास्तविक ज्ञान समझ कर बैठे है।
आजकल हमारे समाज मे इतना शिक्षा वे जोर दिया जाता है फिर भी लोगो मे वही कष्ट,पीड़ा,अशांति है।
क्यों? क्योंकि हम वास्तविक ज्ञान से पड़े है।
यकीन मानिए जब तक हम शब्दो की गहराइयो में नही उतरेंगे हम ऐसे ही भटकते रहेंगे फिर मूर्ख और तोते जैसे किताबी ज्ञान वाले लोगो को भी ज्ञानी मानकर जीते रहंगे।
इसलिए सही मायने में ज्ञान को पाना है और ज्ञानी को समझना है तो ज़रूरत है हमे की हम सब गगहराइयो में उतरकर उस सच तक जाए जो ज्ञान का केंद्र है।।
लेकिन प्रश्न ये उठता है कि
आख़िर ज्ञान के केंद्र तक जाया कैसे जाए, क्योंकि अगर ज्ञान के केंद्र तक पहुचना है तो शब्द ही सहारा बनेगा क्योंकि किसी और चीज़ के माध्यम से तो हम वहां तक पहुंच नही सकते?
फिर हा ज्ञान के केंद्र तक पहुचने के लिए शब्द सिर्फ माध्यम बनेगा।
ध्यान देने वाली बात है ये।
शब्द केवल माध्यम बनेगा ज्ञान के केंद्र तक जाने के लिए तब हम शब्द को ज्ञान नही समझेंगे सिर्फ माध्यम समझेंगे।
फिर प्रश्न आता है कि ज्ञान का केंद्र मिलेगा कहाँ और हम इसको समझेंगे कैसे?
इसका जवाब है ;शब्दो के माध्यम से पूरे होश के साथ अपने आस -पास के सभी घटनाओ को महसूश करना सिर्फ शब्दो से समझना नही उसको महसूश करना या किसी के द्वारा बताए गए शब्दो से अपनी भावना को जोड़ कर देखना और अपने अंदर के तमाम किर्या कलापो पे ध्यान देना ।
बस यही रास्ता  ज्ञान का केंद्र खोलता है।
और हमे वास्तविक ज्ञान के करीब ले कर जाता है।

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