Raj Ashok 07 Jun 2023 कविताएँ समाजिक रोटी 5806 0 Hindi :: हिंदी
सवाल........,? पुछती. कमजोर निगाहे. आखिर ,क्यों ..... ? ज़िन्दगी को योही , ये दर्द देना था। क्या ,सूरज की तपन मे हमने पसीना नही बहाया। सघर्ष तो ,उतना ही किया था । हमने भी जीवन को बेहतर बनाने के लिए .... जितनी मेहनत करते है । बाकी ओर लोग .....? पेट की मजबुरी और भाग्य की कमजोरी ने कभी, दो जून की रोटी से बाहर ....... निकले नहीं दिया। हैरत.....है । इतनी फसले पैदा की फिर भी तरस रहे है । एक -एक अन्न के दाने को, ज़िन्दगी के झोले मे बस ....... । रभ से अरदास बची है।