akhilesh Shrivastava 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक गांव का बचपन 33607 0 Hindi :: हिंदी
गांव में बीते बचपन का , मुझे स्वप्न दिखाई देता है | अपने गांव का वो प्यारा,मुझे द्रश्य दिखाई देता है || कांव -कांव कौवों की ,हमको सुबह सुनाई देती थी | वृक्षों पर तोता मैना की ,हलचल होती रहती थी || कुहू-कुहू कोयल की, बोली मन प्रसन्न कर जाती थी | घर के आँगन में गोरैया, दाना चुगने आती थी | गाय रंभा -रंभा कर ,बछड़े को पास बुलाती थी | दूध पिलाकर बछड़े को ,अमृत हम को दे जाती थी || खेत में जाते बैलों की ,घंटी टन- टन बज जाती थी | गांव के मंदिर से शंख की , ध्वनि सुनाई देती थी || खेतों की हरियाली प्यारी ,सबके मन को भाती थी | आमों की अमराई की ,वो छांव सुहानी लगती थी || दोस्तों की वो हंसी ठिठोली ,हमको प्यारी लगती थी | गांव के प्यारे अपने पन की ,सीख सुहानी लगती थी || कच्ची पगडंडी की गलियां हमको प्यारी लगती थी | ठंडी शुद्ध हवा की खुशबु,हमको प्यारी लगती थी || शहरों के कोलाहल से हमें शांति प्यारी लगती है | गांव में बीते बचपन की , हमें यादें प्यारी लगती हैं| रचियता --- अखिलेश श्रीवास्तव
I am Advocate at jabalpur Madhaya Pradesh. I am interested in sahity and culture and also writing k...