Irfan haaris 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 71396 0 Hindi :: हिंदी
मैं शहर में आके भूल न पाया गांव की वो कच्ची गलियां जो हल्की बारिश होने पर फिसलन से भर जाती थीं जो तेज धूप में जल के नन्हें पांव जलातीं थी जो धूल हवा के झोंको से हम पे आके पड़ जाती थी फ़िर मैं आंखों पे हाथ धरे आगे को बढ़ जाता था आंधी के गुब्बारों संग संग मैं भी उड़ जाता था पर हां उस उड़ती धूल में बारिश की उन बूंदों में इक अपनापन सा लगता था बस प्यार ही प्यार झलकता था अब ढूंढे से कहां मिलती हैं शहर में वो वैसी गलियां मैं शहर में आके भूल ना पाया गांव की वो कच्ची गलियां