संदीप कुमार सिंह 15 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4772 0 Hindi :: हिंदी
(मुक्तक छंद) नजर ने नजर को नज़र से ही कुछ नज़राना पेश किया। चार नज़र अब कुछ पल के लिए यूं आपस में प्यार किया। नतीजा कुछ यूं निकला दोनों के पलक ही अब न झपके_ प्यार करने वालों के लिए एक गज़ब हुनर पेश किया। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....