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तरंग

Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य तरंग 20823 0 Hindi :: हिंदी

तुम उस लहर के जैसी हो 
मैं आज भी किनारे पे बैठा  हू 
तुम लहर के साथ  
तरंग बन निकल गये 
मैं आज भी किनारे पे 
ही इंतजार मे हूँ 
इस उम्मीद मे की 
कभी मुझे भी  
तुम अपने साथ 
बहा ले जाओगे 

मैं भी तेरे साथ 
गोते खाना चाहता हूँ  
लहरों पे आशिया 
बनाना चाहता हूँ  
सपनो से सुन्दर घर 
बनाना चाहता  हूँ  
मुस्कुराते खिल खिलाते  
लहरों पे अपना भी 
घर वसना चाहता हूँ 

निला आशमा और 
खुला छत हो
चाँद तारे सिरहाना  
समन्द्र बिस्तर हो
तुम मेरी बाहो मे 
और कोई दुसरा न हो 
बस हम और तुम 
और प्रेम के मीठास हो

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