शुभम योगेन्जुल 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक ऐसा होना चाहिए मनुष्य को 36221 1 5 Hindi :: हिंदी
बढ़ो इतना कि जितनी हो पृथ्वी की भुजाएं फैलो इतना कि आकाश के समान तुम्हारी छाया समूची पृथ्वी पर पड़े पर हो न दर्प तुम्हें अपने बढा़व,फैलाव का रहो मौजूद हवा की तरह जैसे वह देखती नहीं कि पृथ्वी पर या आकाश की छाया के नीचे कौन दौलतमंद कौन अभावग्रस्त है, पहुँचती है दोनों के निकट आवश्यकता के अनुरूप....
1 year ago