मोती लाल साहु 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक मानव तन के दो रूप, प्रथम शरीर जिसका अंत होगा। दूसरा जो " प्राण- अनंत अविनाशी " है। मनुष्य शरीर में प्राकृतिक रूप से एक क्षमता है, स्वरूप ज्ञान (राजयोग) से अनंत अविनाशी तक पहुंच संभव है। संपूर्ण विधि संत शरण में सुलभ है।। 9133 0 Hindi :: हिंदी
मानव तन के दो रूप, प्रथम देह का- अंत। दूजा है प्राण- अनंत, पल दो पल का साथ।। मानव देह गुण अनेक, स्वयं का ज्ञान मूल। अंत से अविनाशी तक, विद्या वह राजयोग।। मनुष्य देह है कमाल, परलोक को जहाज। उड़ेगा भक्तिमार्ग वह, मंजिल है बैकुंठ।। मानव तन के दो रूप, अंत है- नाशवान। अविनाशी- परमअनंत, सर्वविधि- संतजान।। मोती-