YOGESH kiniya 30 Mar 2023 आलेख धार्मिक उपवास और व्रत 14969 0 Hindi :: हिंदी
जिस देश को संपूर्ण विश्व ने विश्व गुरु की उपमा से उपमानित किया हो। नि:संदेह उस देश के धर्म, संस्कृति और सभ्यता में जरूर कुछ प्रशंसनीय तथा अनुकरणीय बातें रही होगी। अगर हम बात करे विश्व गुरु भारतवर्ष के समृद्ध समाज की धार्मिक पद्धति या धर्म की ,तो हमें ज्ञात होता है की भले भी हमारे देश में धर्म या धर्म पद्धतियां भिन्न-भिन्न हो परंतु उनकी शिक्षाओं का मूल मंत्र और उनकी अंतरात्मा अभिन्न है। सभी धर्म मनुष्य को पुण्य आचरण से ईश्वर प्राप्ति का सन्मार्ग बताते हैं। मानव मात्र की प्रवृत्ति है कि पुण्य आचरण से उसे सुख तथा पाप के आचरण से दु:ख होता है । अतः प्रत्येक प्राणी सुख की प्राप्ति तथा दुख की निवृत्ति चाहता है । और इस सुख की प्राप्ति और दुख की निवृत्ति के लिए धर्म में अनेक उपाय बताए गए हैं। इन्हीं उपायों में से एक श्रेष्ठ तथा सुगम उपाय हैं- उपवास तथा व्रत वैसे दोनों समानार्थी है। परंतु अगर शाब्दिक अंतर देखा जाए तो केवल इतना है कि व्रत में भोजन किया जाता है और उपवास मे निराहार रहा जाता है। उपवास दो शब्दो से मिलकर बना है - उप और वास । उप का मतलब होता है - नजदीक और वास का मतलब होता है - निवास। इस तरह से उपवास का मतलब हुआ - अपनी आत्मा में निवास । संसार के समस्त धर्मों ने किसी न किसी रूप में व्रत और उपवास को अपनाया है। व्रत, धर्म का साधन माना गया है।व्रत के आचरण से पापों का नाश, पुण्य का उदय, शरीर और मन की शुद्धि, तथा अभिलषित मनोरथ की प्राप्ति होती है। व्रतों के आचरण से देवता, ऋषि, पितृ प्रसन्न होते हैं। ये प्रसन्न होकर साधक को आशीर्वांद देते हैं जिससे उसके अभिलषित मनोरथ पूर्ण होते हैं। किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दिनभर के लिए अन्न या जल का त्याग ही व्रत कहलाता है। अर्थात् किसी कार्य को पूरा करने का संकल्प लेना ही व्रत है या यूं कहें संकल्पपूर्वक किया गया कर्म ही व्रत हैं। यह संकल्प भगवत प्रेम ,मन वांछित वस्तु की प्राप्ति या किसी साधना कि सिद्धि के लिए भी हो सकता है। अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो उपवास में निराहार या अल्पाहार से शरीर को वसा मिलना बंद हो जाती है और पहले से मौजूद वसा का उपयोग होने लगता है। इस प्रक्रिया में शरीर में जमा मृत कोशिकाएं धीरे-धीरे नष्ट होकर शरीर से बाहर आ जाती हैं। इस प्रकार व्रत रखने से रक्त शुद्ध होता है। इससे आतों की सफाई होती और पेट को आराम मिलता है। उत्सर्जन तंत्र और पाचन तंत्र, दोनों को ही अपनी अशुद्धियों से छुटकारा मिलता हैं। इसप्रकार हम कह सकते हैं कि उपवास तथा व्रत में शारीरिक, मानसिक, आत्मिक, और दैविक शक्ति प्रदान करनी का सामर्थ्य विद्यमान है। योगेश किनिया वरिष्ठ अध्यापक स्वामी विवेकानन्द राजकीय मॉडल स्कूल सिवाना जिला बाड़मेर (राजस्थान) मो.8104578852
Senior teacher Swami Vivekanand government model school siwana, Barmer...