सुधीरकुमारपन्नालाल प्रतिभा 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक trishanku 13413 0 Hindi :: हिंदी
हंसिये पर खड़ा हूं कहां जाऊं क्यों जाऊ इधर जाऊ की उधर जाऊ समझ में नहीं आ रहा है एक तरफ कुआं हैं तो एक तरफ है खाई कहां जाऊं बता ए जिन्दगी मैं पेशोपेश में हूं मेरे समझ से परे है मैं अपने जिंदगी के फैसले को ऐ जिंदगी तुमपे छोड़ रहा हूं