Raj Ashok 25 Dec 2023 कविताएँ समाजिक अन्नदाता 10343 0 Hindi :: हिंदी
नज़र नहीं आता क्या ? इन्हे आसमान , जो इतनी मेहनत के बाद भी थक-हार के ज़मीन पे आराम नहीं चाहता । कौन है । ये आखिर अपना भाग्यविघाता । जो चिर रहा कलेजा घरती का नए-नए,पेड़ ,पोघों के स्वागत् मे ईश्वर से सो-सो, बाते कहता ,सुनाता। अब जाना क्या ? ये है भारत का अन्न दाता। अपनी मेहनत का दाना -दाना हर एक कोन- कोन मे पहुचाता। हर वर्ष फसल उगाने को फिर एक नया कर्ज उठाता। और अपना फर्ज निभाता। ये है। भारत का अन्न दाता। कोई भूखा ना रहे मेरे देश मे ना सोता-ना जग पाता। बस अपनी मेहनत से हर साल भंडारे देश के भरता। ओर ,खुद भुखा सो जाता। ये है। भारत का अन्न दाता कान्ति की बातें करने वालो पहले अब जरा इन्हे सम्भालो , आने -वाला कल फिर महंगा ना हो ये तुम्हारा , तो इन्हे गले लगा लों ये है ।भारत का अन्न दाता। कर्ज मे डुबा ये हार के जीवन से छोड़ ना दे कर्म का ये अपना पथ संघर्ष की इस राह मे थोड़ी फिर ऊमीद जगा दो । थोडा़ ,खुद फर्ज निभालों ये है भारत का अन्न दाता।