Rameez Raja 06 Feb 2024 कविताएँ समाजिक डर और दर्द 9651 0 Hindi :: हिंदी
डर और दर्द दोनों का है नाता कोई , है नाता जो दोनों में बहुत गहरा, तभी तो चीख उठी उस दर्द के मारे, कह उठी सारी सच्चाई की दास्तां बयां, इसीलिए कह उठते हैं डर और दर्द सिक्के की है दो पहलुएं। डर और दर्द सिक्के की है दो पहलुएं। बिना डर के दर्द नहीं होता और बिना दर्द के डर नहीं होता डर का होना तो स्वाभाविक है। इसलिए चलो उठो बढ़ाओ अपने कदम, लेकर प्रभु का नाम, धैर्य के बल पर तोड़ दो उस डर के जंजीरों की जकड़न। न डरों कभी भी किसी से तुम , न हो दर्द में कभी डर, तोड़ दो उन्हें जो आपको रोके राह पर बस आगे बढ़ो तुम अपने दम पर। बस आगे बढ़ो तुम अपने दम पर ।