संदीप कुमार सिंह 08 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है।जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 3458 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) कुछ तो काला दाल में, सूरत पर है हर्ष। बात करें वह गर्व में, फिर भी हो उत्कर्ष।। कुछ तो काला दाल में,मिलता मुझ से रोज। करता बातें खूब ही, दोनों खाते भोज।। कुछ तो काला दाल में,आज हुआ बेचैन। ह्रदय उदासी से भरे, मलिन हुआ है रैन।। कुछ तो काला दाल में, सभी गए बाजार। खुशियों में थे वे सभी, पैसे लिए हजार।। कुछ तो काला दाल में,बैठक में हैं आज। यूं तो जाते हैं नहीं, रहे छिपाए राज।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....