SEWANAND 17 Aug 2023 कविताएँ समाजिक महिला क्यों घूँघट में जिए, घूंघट प्रथा 5325 0 Hindi :: हिंदी
महिला क्यों जिए घूँघट में जब तूफां में मझधार में जलते रहें दीए, तो आज की महिला क्यों घूँघट में जीए। अशिक्षा के अंधकार में नारियाँ सोती ही रहेंगी, जुल्मों के भार नारी यों ही ढोती रहेगीं।। तब तक ये अनहोनियां होती रहेंगी, जनप्रतिनिधि के रूप में भी वह। कर नहीं पायेगी कोई न्याय की बात, बागडोर होगी न्याय की औरों के हाथ ।। संकोच से बैठेगी नहीं वह स्वयं के आसन पर, दूर बैठकर निहारेगी न्याय के कपड़ों में सिमटकर । अपने पद के महत्व को वह समझ नहीं पाएगी, जनता से बात करते वह गलत मानी जाएगी।। सुनो, माताओं और बहनों, कब तक घुन की तरह पिसती रहोगी। घर की चारदीवारों में, उठो और अपने विवेक को जगाओ, लक्ष्मीबाई और इन्दिरा के पद चिह्नों पर कुछ तो चलकर दिखाओ।। संभलो ऐ समाज के नायकों, सफलता अपनी चाहो तो नारियों की दशा सुधारो। पुरूषों को सहयोग देकर चलती है नारी, फिर तो आने वाली पीढ़ी कहलायेगी नहीं बेचारी । शिक्षा और ज्ञान के सैंकड़ों दीप जलाओ, नारी शिक्षा से समाज को खुशहाल बनाओ। नारी कर्म है, नारी धर्म है, नारी शक्ति है, नारी को कमजोर ना समझो, ये कुछ भी कर सकती है।। महिला क्यों जिए घूँघट में जब तूफां में मझधार में जलते रहें दीए, तो आज की महिला क्यों घूँघट में जीए। अशिक्षा के अंधकार में नारियाँ सोती ही रहेंगी, जुल्मों के भार नारी यों ही ढोती रहेगीं।। तब तक ये अनहोनियां होती रहेंगी, जनप्रतिनिधि के रूप में भी वह कर नहीं पायेगी कोई न्याय की बात, बागडोर होगी न्याय की औरों के हाथ ।। संकोच से बैठेगी नहीं वह स्वयं के आसन पर, दूर बैठकर निहारेगी न्याय के कपड़ों में सिमटकर । अपने पद के महत्व को वह समझ नहीं पाएगी, जनता से बात करते वह गलत मानी जाएगी।। सुनो, माताओं और बहनों, कब तक घुन की तरह पिसती रहोगी। घर की चारदीवारों में, उठो और अपने विवेक को जगाओ, लक्ष्मीबाई और इन्दिरा के पद चिह्नों पर कुछ तो चलकर दिखाओ।। संभलो ऐ समाज के नायकों, सफलता अपनी चाहो तो नारियों की दशा सुधारो। पुरूषों को सहयोग देकर चलती है नारी, फिर तो आने वाली पीढ़ी कहलायेगी नहीं बेचारी । संभालो ऐ समाज के नायकों, सफलता अपनी चाहो तो नारियों की दशा सुधारो।। शिक्षा और ज्ञान के सैकड़ों दीप जलाओ, नारी शिक्षा से समाज को खुशहाल बनाओ। नारी कर्म है, नारी धर्म है, नारी शक्ति है, नारी को कमजोर ना समझो, ये कुछ भी कर सकती है।। बन फौजी, सीमा पर जाकर देश हित लड़ सकती है. ये चाहे, दुनियां को बदलकर । इतिहास नया रच सकती है, माँ का फर्ज निभाने वाली, चाँद पर भी जा सकती है।। पुरुषों को सहारा देने वाली, समान पीड़ा सहने वाली, क्यों घूँघट में जिए। पुरुष को शक्ति देने वाली नारी को स्वतंत्र विचरण करने दो, नारी बेचारी नहीं, नारी स्वयं एक शक्ति है।। लेखक :- सेवानंद चौहान राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षक