Preksha Tripathi 22 Jun 2023 कविताएँ समाजिक 18313 1 5 Hindi :: हिंदी
संप्रति उर की विडंबना दूजा कलुषित मन। तमिसावरण भविष्य का मस्तिष्क करे क्या चिंतन? पामर का वासर रोष भरा। अकर्मण्यता का दोष भरा। जिसके भार वहन में करती, डगमग् डगमग् आज धरा।। मानव ने मानवता का किया आज है परित्याग। नर के शोणित का पान बुझाता नर की ही क्षुधा की जठर आग।। न मर्यादा न सदाचार। न किंचित् शेष अब सद्विचार। अखिल धरा पर व्याप्त हो चुका, कुसंस्कारों का ही दुराचार।। विचारों की लेखनी से प्रेक्षा त्रिपाठी
9 months ago