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बिकता बचपन

कविता केशव 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक मजदूर बच्चे व इस दुनिया का ज़ुल्म 70733 0 Hindi :: हिंदी

आंखों मे हजारों अरमान लिए, 
दुनिया में जन्म लेता है बचपन। 
अरमां पुरे  होंगे मेरे एक दिन , 
ढूंढे अपनो में वो सहारा पन। 
उसको क्या मालुम इस स्वार्थ भरी दुनिया में, 
नहीं मिलता कोई अपनापन। 
लालच की इस अंधेरी नगरी में, घुम हो जायेगा उसका बचपन। 
खिलता बचपन लगे सुहाना, 
क्यों बना देते हैं मुरझाया चमन। 
तन से कच्चा मन से बच्चा, 
क्यों नहीं दिखता उसका भोलापन। 
लालची लोग कर देते हैं सौदा उनका,
 देखा ऐसे बिकता बचपन। 
बेबस हुए लाचार हुए, 
बस रह जाता है उनका गूंगापन। 
सिर पर बोझा, पावों में छाले, 
आंखों में रहता सहमा पन। 
सड़को पर फिरे भीख मांगता, 
छिन  जाता है सुनहरा कल। 
आओ सब मिलकर उठाएं कसम , 
समेट लेंगे यूं बिखरता बचपन। 
गोद लेकर ऐसे बच्चों को, 
टूटने से बचा ले उनका अंतरमन। 
छोटू - छोटू कहकर बुलाए, 
नहीं कुछ होता उनके जीवन में नयापन। 
सुबह से लेकर शाम तक, 
बस मेहनत करके ही बीत जाता है जीवन। 
अगर देश में प्रगति को लाना है, 
मत बिकने देना देश का बचपन। 
देश का भविष्य है इनके हाथों, 
जब चमकेगा इनका लडकपन। 
बच्चों से ही तो जीवन का सार है,
महक जाएं इस दुनिया का चमन। 
बचपन को समृद्ध बनाकर,
करके हौसले बुलंद, छुने दो धरती और गगन। 

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