Samar Singh 06 Jun 2023 कविताएँ समाजिक जो गाँव की बात कल थी, अब आज देखने को नहीं मिल रहा। 5013 0 Hindi :: हिंदी
हाल क्या बयाँ करूँ, मेरे गाँव की हालात बदल गई। पहले खुले आम लड़ते थे, अब तो सबकी नफरत बदल गई। दो पक्षों को लड़ाया जाता है, आपस में उनको भिड़ाया जाता है। केकड़ा प्रवृत्ति है चौमुखी विकास पर, मानवता है दुःखी इस विनाश पर। आँखों की हर आँसू, बरसात बदल गई, हाल क्या बयाँ करूँ, मेरे गाँव की हालात बदल गई।। गाँव में सांसदों की तरह, कई पार्टियाँ बन गई हैं। तेरे घर खुशी है, मैं न आऊँगा, सबमें ऐसी जिद्द ठन गई है। पड़ोसी भी ऐसे हो गए हैं, चेहरा न देखने के लिए, दीवारें तन गई हैं। शादियों में पहले एक दूजे में रहता उल्लास, अब तो सारी बारात बदल गई। हाल क्या बयाँ करूँ, मेरे गाँव की हालात बदल गई।। कुजाती तेरे घर का मैं, खाना नहीं खाऊँगा। तेरे खुशी में मैं तो, गाना नहीं गाऊँगा। यह वहीं ठौर- द्वार जहाँ पे, राजनीति छोड़ गले मिलते कभी, विष का घड़ा लिए घूमने लगे सभी। दिन की बात क्या करूँ, कि हर रात बदल गई। हाल क्या बयाँ करूँ, मेरे गाँव की हालात बदल गयी।। वो दुःखी है तो मुझे अपार सुख है, वो खुश है तो मुझे भयंकर दुःख है। हर कोई एक दूजे से सलाह नहीं लेता है, हर किसी की सुख दुख में भाग नहीं लेता है। लोग देते थे एक दूजे का साथ, अब तो वो सारी बात बदल गयी। हाल क्या बयाँ करूँ, मेरे गाँव की हालात बदल गई।। रचनाकार - समर सिंह " समीर G "