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गहरी संध्या में उठा वीरान सा ध्वनि

Shivani singh 13 Jul 2023 कविताएँ अन्य 6178 0 Hindi :: हिंदी

विधवा की आवाज़

काली रात छाती पर आवाज़ लगी,
विधवा ने निहारा और विचलित हो गई।

गहरी संध्या में उठा वीरान सा ध्वनि,
उसकी माटी से निकली कुछ ये अभिमानी।

आंसू की बूंदें बह गईं उसकी आंखों से,
दिल के दरिया में उतर गया विचारों का मन्दिर तक।

मुस्कान के पीछे छिपा दर्द का विलाप,
जीवन की प्रतिष्ठा की खाई में लिपटा जीने का मार्ग।

विधवा की आवाज़ जगायी दरियाओं को,
करुण रस की मृदुलता ने जगाई भावनाओं को।

उसने चिल्लाई और कहा, "क्यों मैं अकेली हूँ?
क्या जीने का अधिकार मेरा नहीं है?"

शव की तरह बह रहीं थीं आंखों की नदियाँ,
खुद को तारीफ करती वह एकाकी थी।

परिवार की झूली में लपेटी रहती हैं,
आज उसने इच्छा की है, कुछ सबूत मांगती है।

करुणा की आंधी में वो उड़ गई थीं,
वादी की भरमार में खो गई थीं।

सुनी हैं उसकी आवाज़ तक कुछ औरतें,
मगर करुण रस की धूम में खो गई हैं।

विधवा की आवाज़ आज भी उठती हैं,
करुणा की आंधी में सबको भरपूर मिलती हैं।

जीवन की कठिनाइयों को जानते हैं वो,
वह विधवा जिसने अकेलापन को जाना है।

करुणा की कविता गहराईयों से बोलेगी,
विधवा की आवाज़ हम सबको चोंकाएगी।

यह कविता एक विधवा महिला की कठिनाइयों, उसके अकेलापन और दुःख को व्यक्त करती है। उसकी आवाज़, जो करुण रस की मृदुलता से भरी हुई है, अन्य महिलाओं को भी प्रभावित करती है और उनकी संघर्षों और भावनाओं को समझने की क्षमता प्रदान करती है।

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