संदीप कुमार सिंह 14 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4554 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) मन में जब दृढ़ लगन हो,मंजिल मिले जरूर। फिर तो यहां मिशाल बन,दुनिया को दें नूर।। रहें तैयार हर घड़ी,मंजिल मिले जरूर। यहां असंभव कुछ नहीं,रहें बुरों से दूर।। सुबह शाम अब बस यही,अपना हो शुभ नाम। मंजिल मिले जरूर जब,करिए अपना काम।। और नहीं कुछ सोचता,खुद में हूं मैं चूर। दौड़ रहा हूं राह पर,मंजिल मिले जरूर।। मंजिल मिले जरूर तब,जब चलिए निज राह। नतमस्तक हो रोक सब,और बढ़ाए चाह।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....