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मैं मुसाफिर अपने जीवन का-जो राह है मैने स्वीकारा है

Sudhanshu singh 23 Oct 2023 कविताएँ अन्य 4738 0 Hindi :: हिंदी

जीवन का जो राह है, 
मैने स्वीकारा है।
जीवन में जो कुछ भी है, 
मेरा है मुझें प्यारा है।
मीठी यादों सा बैहता,
दिल में एक झरना सा हैं।
मन के अंचल में बैहता ,
निर्मल - शीतल जल धारा,
व्याकुल मन का सा आगन, 
जो सीच - सीच जाता। 
मन का व्याकुल पंछी उड़ता,
दूर गगन की ओर हैं। 
भटका पथिक सा चलता मैं,
लेकर अनुराग अलग सा ।
मैं मुसाफिर हूँ अपने जीवन का,
मन का राही बन जाता कभी।
बिन राह चलता मैं, 
मुसाफिर नयी राह बनाये।
चलता नित्य राह में मैं, 
अपनी मंजिल की चाह में।
भटका पथिक सा चलता,
अपनी राह में मैं।
             
                       Writer - सुधांशु सिंह जेठा।

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