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वेश्या - कहानी एक वेश्या की

Sachin 08 May 2023 कहानियाँ समाजिक 7548 0 Hindi :: हिंदी

आगे एक सार्वजनिक पेशाबखाना था, जहां से तेज बदबू आ रही थी । 10 कदम और आगे चलने पर 64 नंबर कोठे के ठीक सामने ‘चाय वाला’ की चाय की खानदानी दुकान थी । चाय की दुकान से 5 कदम हट कर अधेड़ उम्र की दरमियाना कद की पार्वती खड़ी थी । उस की उम्र 45 साल के करीब लग रही थी । वह सड़क के बगल से हो कर गुजरने वाले ऐसे राहगीरों को इशारा कर के बुला रही थी, जो लार टपकाती निगाहों से कोठे की तरफ देख रहे थे ।

पार्वती की आंखें और गाल अंदर की तरफ धंसने लगे थे l चेहरे पर सिकुड़न के निशान साफसाफ झलकने लगे थे l अपने हुस्न को बरकरार रखने के लिए उस ने अपनी छोटी छोटी काली आंखों में काजल लगाया हुआ था l

गरमी की वजह से पार्वती का शरीर पसीने से तरबतर हो रहा था l हाथों में रंगबिरंगी चूडि़यां सजी हुई थीं l सोने की बड़ीबड़ी बालियां कानों से नीचे कंधे की तरफ लटक रही थीं l वह लाल रंग की साड़ी में ढकी हुई थी, ताकि ग्राहकों को आसानी से अपनी तरफ खींच सके l

पिछले 3 घंटे से पार्वती यों ही चाय की दुकान के बगल में खड़ी हो कर राहगीरों को अपनी तरफ इशारा कर के बुला रही थी, लेकिन अभी तक कोई भी ग्राहक उस के पास नहीं आया था l

पार्वती को आज से 10 साल पहले तक ग्राहकों को फंसाने के लिए इतनी ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी. उस ने कभी सोचा तक नहीं था कि उस को ये दिन भी देखने पड़ेंगे l

आज से 28-29 साल पहले जब पार्वती इस कोठे में आई थी तो उस को सब से ऊपरी मंजिल यानी चौथी मंजिल पर रखा गया था, जहां 3 सालों तक उस की निगरानी होती रही थी l वहां तो वह बैंच पर बैठी रहती थी और सिंगार भी बहुत कम करती थी, फिर भी ग्राहक खुद उस के पास बिना बुलाए आ जाते थे l लेकिन आज ऐसा समय आ गया है कि इक्का दुक्का ग्राहक ही फंस पाते हैं l

जो धंधेवालियां अब अधेड़ उम्र की हो गई हैं, वे सब से निचली मंजिल पर शिफ्ट कर दी गई हैं l चौथी और तीसरी मंजिल पर सभी नई उम्र की धंधेवालियां बाजार को संवारती हैं l दूसरी मंजिल पर 25 से ले कर 40 साल की उम्र तक की धंधेवालियां हैं और सब से निचली मंजिल पर 40 साल से ज्यादा उम्र की धंधेवालियां रहती हैं, जो किसी तरह अपनी उम्र इस कोठे में गुजार रही हैं l

ऊपरी मंजिलों पर जहां लड़कियां एक बार में ही 6000-7000 से ज्यादा रुपए ऐंठती थीं, वहीं पार्वती को सिर्फ 1000-1500 रुपए पर संतोष करना पड़ता था l उस में से भी आधा पैसा तो कोठे की मालकिन यमुनाबाई को चुकाना पड़ता था l

आज जब पुराना जानापहचाना ग्राहक रामवीर, जिस की करोलबाग में कपड़ों की खानदानी दुकान है, पार्वती को देख कर बड़ी तेजी से शक्ल छुपाता हुआ ऊपरी मंजिल की तरफ चला गया तो पार्वती को बहुत दुख हुआ l वह उन दिनों को याद करने लगी, जब रामवीर की शादी नहीं हुई थी l तब वह अकसर अपनी जिस्मानी प्यास बुझाने के लिए पार्वती के पास आता था l अब पिछले कुछ महीने से एक बार फिर उस ने इस कोठे में आना शुरू किया है, लेकिन रंगरलियां नई उम्र की लड़कियों के साथ ऊपरी मंजिल पर मनाता है l

मंटू जैसे 50 से भी ज्यादा पुराने ग्राहक थे, जो पार्वती की तरह ही 
45 साल से ज्यादा के हो चुके थे l इन के बच्चे भी जवान हो गए थे, लेकिन ये लोग भी हफ्ते में 1-2 बार 64 नंबर के कोठे में हाजिरी दे देते थे l

इन में से कई चेहरे पार्वती को अच्छी तरह से याद हैं l वह अभी तक इन्हें नहीं भूल पाई है l इन ग्राहकों में से कुछ की प्यार मुहब्बत वाली घिसीपिटी बातें आज तक पार्वती के कानों में गूंजती रहती हैं l लेकिन अब जब ये लोग पार्वती को देख कर तेज कदमों से ऊपर की मंजिलों पर चले जाते हैं तो वह टूट जाती है l

पार्वती नेपाल के एक खूबसूरत गांव से यहां आई थी l कोठे की दुनिया में फंस कर वह सिगरेटशराब पीने लगी थी l इस के बाद वह जिंदगी की सारी कमाई अपने आशिकों, दलालों और सहेलियों के साथ पी गई l

पार्वती के साथ 10 और लड़कियां भी नेपाल से यहां आई थीं, आधी से ज्यादा लड़कियां अपना 5 साल का करार पूरा कर के वापस लौट गईं और दूरदराज के पहाड़ी गांवों में अपने भविष्य को संवार चुकी थीं, लेकिन पार्वती की बदकिस्मती ने उस को इस दलदल से निकलने ही नहीं दिया l

दुनिया में देह धंधा ही एक ऐसा पेशा है, जहां पर अनुभव और समय बढ़ने के साथ आमदनी और जिस्मफरोशी की कीमत में गिरावट होती जाती है l नई उम्र की धंधेवालियों को तो मुंहमांगा पैसा मिल जाता है l

पार्वती जब 16 साल की थी तो उस को चौथी मंजिल पर जगह मिली थी l उस के बाद तीसरी मंजिल, दूसरी मंजिल पर आई और अब पहली मंजिल की अंधेरी कोठरी में आ कर अटक गई है, जहां पर बाहरी दुनिया को झांकने के लिए एक खिड़की तक नहीं है l

जब दिल नहीं लगता था तो पार्वती शीतल से बात करती थी, जो उसी के साथ नेपाल से यहां आई थी l शीतल की एक बेटी थी, जिस के बाप का कोई अतापता नहीं था l उस लड़की ने एक साल पहले अपनी मां का कारोबार संभाल लिया था और चौथी मंजिल पर अपना बाजार लगाती थी l

उस के पास ही तीसरे बिस्तर पर सलमा रहती थी, जो राजस्थान के सीकर जिले से आज से 25 साल पहले यहां आई थी l उस को भी किसी अजनबी से एक बेटा पैदा हो गया था l बेटा अब मां को सहारा देने लगा था l उस को तालीम हासिल करने का मौका कभी नहीं मिल पाया था l

अब वह लड़का दलाली का काम करने लगा था l वह अजमेरी गेट, कमला मार्केट, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के इर्दगिर्द ग्राहकों की तलाश में मंडराता रहता था l वह अच्छाखासा पैसा कमा लेता था l कभीकभार तो वह ग्राहक से हजारों रुपए ऐंठ लेता था l

दूसरी तरफ लक्ष्मी बैठती थी, जो तेलंगाना के करीमनगर से पार्वती के जमाने में यहां आई थी l उस की हालत कमोबेश पार्वती जैसी ही थी l पार्वती की तरह ही लक्ष्मी को किसी भी अजनबी से कोई औलाद नहीं हो पाई थी l

पार्वती की यही तीनों सब से अच्छी सहेलियां थीं, जो अपना सुखदुख बांटती थीं l यही पार्वती का एक छोटा सा संसार था, एक छोटा सा समाज था l

पार्वती का जन्म नेपाल की राजधानी काठमांडू से काफी ऊपर एक सुंदर पहाड़ी गांव में हुआ था l गांव काफी चढ़ाई पर था, जहां पर तब 3 दिन तक पैदल चल कर पहुंचने के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं था l लोग वहां से रोजगार की तलाश में मैदान और तराई के हिस्से में आते थे, क्योंकि गांव में जीविका का कोई भी अच्छा जरीया नहीं था l

पार्वती के मां बाप भी गांव के ज्यादातर लोगों की तरह गरीब थे और उन लोगों की जिंदगी पूरी तरह खेती पर ही निर्भर करती थी l

जब पार्वती 10 साल की थी तो उस का पिता बीमारी की चपेट में आ कर इस दुनिया से चल बसा था l अब घर में काम करने वालों में मां अकेली बच गई थी 

दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने में मां को काफी पसीना बहाना पड़ता था l वह पूरा दिन अपने छोटे से खेत में काम करती थी और बकरियां और भेड़ें पालती थी l पार्वती कामकाज में मां का हाथ बंटाने लगी थी l

पार्वती के घर से थोड़ा सा हट कर धर्म बहादुर का घर था l उस का घर दूर से देखने पर ही किसी सुखी अमीर आदमी का घर लगता था l

धर्म बहादुर हर साल 6 महीने के लिए पैसा कमाने के लिए दिल्ली चला जाता था और पैसा कमा कर गरमी के मौसम में घर लौट आता था l उस के बीवी बच्चे अच्छे कपड़े पहनते थे और अच्छा खाना खाते थे l

पार्वती की मां की नजर में धर्म बहादुर बहुत मेहनती और नेकदिल इनसान था l एक बार धर्म बहादुर दिल्ली से घर लौटा तो उस ने पार्वती की मां से कहा, ‘‘अब तो पार्वती 15 साल की हो गई है l अगर वह मेरे साथ दिल्ली जाती है तो उस को अपनी जानपहचान के सेठजी के घर में बच्चों का खयाल रखने का काम दिला देगा l उन का बच्चा छोटा है l पार्वती बच्चे की देखरेख करेगी. पैसा भी ठीकठाक मिल जाएगा और 2 सालों के अंदर वह मेरे साथ गांव वापस आ जाएगी l’’

मां ने कुछ सोचविचार किया और फिर वह मान गई, क्योंकि धर्म बहादुर एक अच्छा पड़ोसी था और मां को उस के ऊपर पूरा भरोसा था l

पार्वती के मन में भी अब दिल्ली जाने की लालसा जागने लगी थी l वह अब जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी l चेहरे पर खूबसूरती चढ़ने लगी थी l वह दिल्ली के बारे में काफी सुन चुकी थी. अब उसे अपनी आंखों से देखना चाहती थी l

उसी सर्दी में मां ने पार्वती को धर्म बहादुर के साथ दिल्ली भेज दिया l चूंकि वह उन का पड़ोसी था और पार्वती का दूर का चाचा लगता था, इसीलिए मां उस पर यकीन करती थी l पार्वती के पिता के मर जाने के बाद वह उन दोनों की थोड़ीबहुत मदद भी कर दिया करता था l

धर्म बहादुर पार्वती को हिमालय के आगोश में बसे हुए इस छोटे से पहाड़ी गांव से उतार कर सीधा दिल्ली के जीबी रोड के इस 64 नंबर कोठे में ले आया l अब अल्हड़ और भोलीभाली पार्वती को मालूम हुआ कि वह तो एक दलाल के हाथ में फंस गई है l

धर्म बहादुर 64 नंबर कोठे की चौथी मंजिल पर धंधेवालियों से नकदी वसूल कर बक्से में रखता था और यमुनाबाई को हिसाबकिताब दिया करता था l वह यमुनाबाई के लिए कई सालों से काम करता आ रहा था l

इस तरह से पार्वती कोठे की बदबूदार दुनिया में फंस गई थी l इस घटना ने उस की जिंदगी के रुख को पूरब से पश्चिम की तरफ मोड़ दिया था l

धर्म बहादुर ने कुछ पैसा मां को ईमानदारी से पहुंचा दिया था, लेकिन पार्वती दिल से काफी टूट गई थी l धर्म बहादुर ही उस की जिंदगी का पहला ऐसा मर्द था, जिस ने उसे कच्ची कली से फूल बना दिया था और फिर उस के बाद यमुनाबाई को एक सेठ ने शगुन में मोटी रकम दी और वह इस मासूम कली को 2 हफ्ते तक चूसता रहा l वह चाह कर भी यह सब नहीं रोक सकी थी l

इस के बाद तो पार्वती पूरी तरह से खुल चुकी थी l उदासी और डर की दुनिया से 3 महीने के अंदर ही बाहर निकल आई और कोठे की रंगीन दुनिया में इस तरह खो गई कि 30 साल किस तरह बीते, इस का उसे पता भी नहीं चला l हां, यहां आने के 3 साल बाद वह एक बार घर लौटी थी, पर तब तक मां बहुत ज्यादा बीमारी हो चुकी थी l बेटी के घर लौटते ही मां एक महीने के अंदर ही चल बसी l

कुछ दिनों के बाद पार्वती को फिर से उस कोठे की याद आने लगी थी, जहां पर कम से कम उस के आशिक उस की खूबसूरती की तारीफ तो करते थे l उस ने घर में ताला मार कर चाबी पड़ोसी को दे दी और फिर से कोठे की इसी रंगीन दुनिया में लौट आई l तब से ले कर आज तक वह यहीं पर फंसी रह गई l

जब कभी पार्वती बहुत ज्यादा मायूस होने लगती थी, तब वह सलीम चाय वाले से गुफ्तगू कर के अपने दिल को बहलाती थी l सलीम चाय वाला अपने अब्बा की मौत के बाद पिछले कई सालों से अकेला ही चाय बेचता आ रहा था l वह भी अब बूढ़ा हो गया था l वह पार्वती के सुनहरे लमहों से ले कर अभी तक की बदहाली का गवाह बन कर इस कोठे के गेट के सामने चाय बेचता आ रहा था l

वह पार्वती को कभीकभार मुफ्त में चाय, पान और सिगरेट गुटका दे दिया करता था l जब इन सब चीजों से भी उस का दिल तंग हो जाता था l तो वह वीर बहादुर के पास कुछ देर बैठ कर नेपाली भाषा में बात कर लेती थी और अपने वतन के हालात पूछ लेती थी l

वीर बहादुर पार्वती के गांव के ही आसपास के किसी पहाड़ी गांव से यहां आया था और रिश्ते में धर्म बहादुर का दूर का भाई लगता था l अपने देशवासियों से बात कर के दिल को थोड़ाबहुत सुकून मिलता था l

जब पार्वती सड़क के किनारे खड़ीखड़ी थक जाती थी और कोई ग्राहक भी नहीं मिलता था तो वह उसी अंधेरी कोठरी में वापस लौट आती थी, जहां रात हो या दिन, हमेशा एक बल्ब टिमटिमाता रहता था और उस बल्ब में इतनी ताकत नहीं थी कि वह पूरी कोठरी को जगमगा पाए l

जब पार्वती खाली होती थी तब वह सामने रेलवे स्टेशन पर खड़ी जर्जर होती एक मालगाड़ी और अपनी जिंदगी के बारे में सोचते हुए खो जाती थी कि धंधेवाली की जवानी और जिंदगी भी इसी मालगाड़ी की तरह है, जो तेज रफ्तार से कहां से कहां तक चली जाती है, इस का पता भी नहीं चल पाता है l

जब वह ज्यादा चिंतित हो जाती तो सलमा उस को हिम्मत बंधाते हुए कहती थी, ‘‘मेरा बेटा है न तुम को कुछ भी होगा तो वह मदद करेगा. जब तक मैं यहां हूं, तब तक हम दोनों साथसाथ रहेंगी l एक दूसरे की मदद करेंगी l तुम रोती क्यों हो… हम तवायफों की जिंदगी ही ऐसी है, इस पर रोनाधोना बेकार है l''

अपनी सहेलियों की ऐसी बातों को सुन कर पार्वती ने आंसू सुखा लिए और अगले दिन के धंधे के बारे में सोचने लगी l शाम को चारों सहेलियां मिल कर शराब खरीदती थीं और नशे में खोने की कोशिश करती थीं लेकिन शराब भी अब उन पर कुछ असर नहीं कर पाती थी l

इधर कई दिनों से पार्वती काफी परेशान रहती थी l अपने पुश्तैनी घर के सामने के बगीचे, पेड़पौधे, पहाड़ पर झरने के उन सुंदर नजारों को काफी याद किया करती थी l

उन्हें देखने की काफी चाहत होती थी l लेकिन वह ऐसे कैदखाने में बंद थी, जहां शुरुआती दिनों की तरह अब ताला नहीं लगता था, लेकिन इतने सालों बाद इस कैदखाने से आजाद हो कर भी अपनेआप को अंदर से गुलाम महसूस करती थी l अब वह चाह कर भी कहीं जा नहीं पाती थी l

सुबह हो गई थी l अचानक पार्वती की नींद टूट गई l ऊपरी मंजिल से नेपाली लड़कियों के रोने की आवाज कानों में गूंजने लगी वह उठ कर बैठ गई और आंखों को मलते हुए सोचने लगी, ‘ये लड़कियां, मेरी हमवतन क्यों रो रही हैं? कोई लड़की ऊपर मर तो नहीं गई?’

पार्वती दौड़ कर ऊपरी मंजिल की तरफ बढ़ी जैसे ही वह वहां पर पहुंची, वैसे ही पाया कि कई लड़कियां जोरजोर से छाती पीटपीट कर रो रही थीं l

पूछने पर पता चला कि आज सुबह काठमांडू के आसपास एक विनाशकारी भूकंप आया है और सबकुछ तबाह हो चुका है l बहुत सारे घर तहसनहस हो गए हैं और हजारों की तादाद में लोग मारे गए हैं l इस में कई लड़कियों के सगेसंबंधी भी मर गए थे

सामने वीर बहादुर चुपचाप बैठा हुआ था l उस की आंखों से आंसू टपक रहे थे l उस को देख कर पार्वती ने पूछा, ‘‘तू क्यों आंसू बहा रहा है बे? तेरा भी कोई सगासंबंधी भूकंप की चपेट में आया है क्या?’’

इस पर वीर बहादुर के मुंह से कुछ शब्द निकले, ‘‘मेरा मौसेरा भाई धर्म बहादुर भी अपनी बीवीबच्चों समेत घर में दब कर मर गया है l गांव में काफी लोग भूकंप में अपनी जान गंवा चुके हैं. सबकुछ तबाह हो गया है l’’

इतना कह कर वीर बहादुर रोने लगा, लेकिन सपना की आंखों से बिलकुल आंसू नहीं निकले l उस के गुलाबी चेहरे पर मुसकराहट और खुशी की लहर बिखरने लगी l इसे देख कर वीर बहादुर काफी अचरज में पड़ गया, किंतु सपना पर इन लोगों के रोनेधोने का कोई असर नहीं हुआ l

अगले दिन सपना ने सुबह के 10 बजे बैग में अपना सारा सामान पैक किया और रेलवे स्टेशन की तरफ चलने लगी l उस की सहेलियां शीतल, लक्ष्मी और सलमा की आंखों से आंसू टपक रहे थे l  इतने सालों बाद वह अपनी सहेलियों को नम आंखों से विदाई दे रही थी l

वीर बहादुर तीसरी मंजिल से सपना की तरफ टकटकी निगाह से देख रहा था l सामने सलीम चाय वाले ने एक पान लगा कर पार्वती को दे दिया l सपना पान को शान से चबाते हुए रेलवे स्टेशन की तरफ अहिस्ताआहिस्ता बढ़ती जा रही थी l कुछ पलों के अंदर ही वह हमेशा के लिए इन लोगों की नजरों से ओझल हो गई l



By : Radhepriyesachin

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