Saurabh Sonkar 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद कुशूर तुम नहीं तुम्हारी गरीबी थी मजदूर तुम नहीं तुम्हारी मजबूरी थी। 88663 0 Hindi :: हिंदी
कुशूर तुम नहीं तुम्हारी गरीबी थी मजदूर तुम नहीं तुम्हारी मजबूरी थी। तस्वीर देखा तो दिल से ये आवाज आयी तुम्हारी मौत का कारण कोई रेल हादसा नहीं तुम्हारी गरीबी थी। युं तो कइयों ने बहाये होंगे खून के आँसू तुम्हारी मौत का मन्जर देखकर उससे कहीं ज्यादा लोग थे तुम्हारी मौत का तमासा बनाये बैठे। ऐ गरीब, ऐ मजबूर, ऐ मजदूर भले ही तुम्हारी रूह को शुकून मिल रहा हो इस भीड को अपनी मौत पर आँसू बहाते देखकर पर इंसानी भेष में ये आँसू भी घड़ियाली है। कुशूर तुम नहीं तुम्हारी गरीबी थी मजदूर तुम नहीं तुम्हारी मजबूरी थी। पैसा बहुत कुछ होता है पर सब कुछ नही अब तुम्हारी जान की कीमत भी चंद रुपये से तौली जायेगी। सच ही कहा है किसी ने ये कलयुग है वरना सुना था इंसान की जान की कोई कीमत नहीं होती। पेट क लिए जीते थे मौत भूखे पेट ही नसीब हुई ट्रैक पे पड़ी रोटी भी तुम्हारे खून से पसीज गयी। उस मंजर को देखा तो ऐसा लगा मानो टुकडा रोटी का खुदको भी कोश रहा था जैसे तुम्हारी भूख का सारा ठीकरा खुद पर ही फोड रहा था। कुशूर तुम नहीं तुम्हारी गरीबी थी मजदूर तुम नहीं तुम्हारी मजबूरी थी सच पूंछो तो तुम्हारी गरीबी का कारण तुम नहीं उनकी अमीरी थी। रेल हादसा तो एक बहाना था सच पूंछो तो तुम्हारी मौत का कारण गरीबी थी भूख थी भुखमरी थी। -सौरभ सोनकर