SHAHWAJ KHAN 30 Mar 2023 ग़ज़ल देश-प्रेम मजहब शायरी , देश , वतन, हालाते वक़्त, 91362 0 Hindi :: हिंदी
धोके सितमगरों की नई चाल चल गए खुद अपनी आग में यहां इन्सान जल गए। खुदगर्जियाँ जहां में नये गुल खिला गईं मजहब के रास्ते में उजाले फिसल गए कहने को ज़िन्दगी की फिजा साज़गार है लेकिन बो वाक्यात आंखों से कल गए। काल तक मेरा वतन था के एक खानदान था लेकिन आज भाई भाई की आंखों में खल गए। गुलशन की शाख शाख ने चीरा गुलों का दिल आया बो वक़्त फूल भी शोलों में ढल गए।