Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक नमस्कार के रूप 12917 0 Hindi :: हिंदी
हर रोज़ करते, करता है हर एक। नमस्कार, तेरे रूप अनेक। तहज़ीब, तहेदिल से किया, कुंदन रूप है। मतलब का माना जाता, जब दिन में रात, रात में धूप है। मारे डर के नमस्कार, जब सामने वाला भूप है। बिना किए सर जाता, जब मामला अंधा कूप है। बिना मन मजबूरी से, जब किधर कहे, किधर रहा है देख। नमस्कार, तेरे रूप अनेक। लुटके, घुटके करे, नमस्कार होता तन से। दिल से निकला, दिल तक पहुंचे, नमस्कार होता मन से। नज़रों से नज़रों का होता, करता कोई अपनेपन से। नमस्कार ऐसा भी होता, ज्यों हथौड़ा कहता घन से। कई नमस्कार, तिरस्कार होते एकमेक। नमस्कार, तेरे रूप अनेक। कुटिल हंसी, दो बार करना, नमस्कार मजाक है। न अर्थ का, न व्यर्थ का, नमस्कार ख़ाक है। बड़ों से औपचारिक, छोटों से साफ़- पाक है। कोई जोड़ने, कोई तोड़ने, कोई नमस्कार हक्काक है। आगे से मन से करो, सौ रोगों की दवा एक। नमस्कार, तेरे रूप अनेक। हर रोज़ करते, करता है हर एक। नमस्कार, तेरे रूप अनेक।