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दो घूंट चाय

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #ambedkar Nagar poetry#Rambriksh kavita#do ghoont chay kavita Rambriksh 58872 0 Hindi :: हिंदी

कविता-दो घूंट चाय

चाय पर बैठ कर
चुस्कियां ले ले कर
मीठी मीठी बातों में
खो कर
भूल पाता अपनी
पुरानी बातें कि
ताजा कर देती थी
मन को
चाय की तरह। 
समझ गया कि
चाय,चाह होती है
चाय नहीं
चाय पर चाहत
बढ़ जाती है
अपनों से,
बढ़ जाती है
अपनापन,,
छोटी छोटी बातें
बड़ी
बड़ी बड़ी बाते
छोटी
कभी कभी तो
छोटी/बड़ी बाते
लम्बी हो जाती हैं
चाय पर। 
मिट जाती हैं
दुरियां,
बढ़ जाती हैं
नजदीकियां,
स्मृतियां 
यादें बन जाती हैं
सात जन्मों के लिए
चाय पर। 
कभी कभी
दुःख को बांटते
सुख को बटोरते
घण्टों घण्टों
चाय के आने तक
चाय को पी जाने तक
पी लेने के बाद तक
देखा है
चाय पर। 
दो घूंट चाय
जोड़ता है
हमें
अपनों से
गहरा कर देता है
दोस्ती,
रिश्तें,
मित्रता,
और याद रह जाती है
वह समय,
स्थान,
और
दो घूंट
चाय की चुस्कियां। 


रचनाकार- रामवृक्ष, अम्बेडकरनगर। 


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