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उठा शस्त्र कर धरा ध्वस्त

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम This poem is manly inspiration of Indian Love and in this majority Indian Protector has been done from Arjuna and All the mind well thought is prepare Krishan 20034 0 Hindi :: हिंदी

गाती है तरनुम वृक्ष, तरूण, तट, 
प्राकृती का भी लेख यही! 
जो पृथक करे विचार धरा कि, 
कवियों का उल्लेख यही!! 
                          है धरा धरी विरों कि कथा से, 
                          साधू, संत, प्रमात्मक से! 
                          है दबी हुई ईतिहास धरा पर, 
                          सच्चाई कि जीत यही!! 
लाखो भय व्यभिचारों मे, 
वतन मेरा आघ़ाज़ किया!
न झुका कभी असत्य के समकक्ष, 
ये बढ़ - बढ़ पद प्रहार किया!! 
                         सत्य - सत्य असत्यता कि हार, 
                         यहां सत्य मेव जयते होती! 
                         धर्म शुलोक माधव समक्क्ष, 
                         अर्जुन का कर्म विजय होती!! 
ये पावन मन का कर्म प्रबल, 
भारत के हम सब रक्क्षक हैं! 
मार्ग प्रदर्शक कृष्ण करे, 
हम इस वशुधा के अर्जुन हैं!! 
                      गा रही गीत फिर ये वशुधा, 
                      तुम अड़े रहो और कर्म करो! 
                      कर पावन धरती का कर्म प्रबल, 
                      इस वशुधा के सम्मान बनो!! 
उठा शस्त्र कर धरा ध्वस्त, 
गांडीव तेरी कहार रही! 
बन फिर अर्जुन इस वशुधा का, 
ये मिट्टी तुझे पुकार रही!! 
                          पुकार रहा ये नभ मंडल, 
                          जो नील सरोवर वाला हैं! 
                          कर आजाद सच्चाई को, 
                          ये कर्म तो माधव वाला है!! 
चला रहे तेरे रथ समीर, 
कर्मो का कर्म पहरेदार बना! 
बेकार के हैं निष्ठा, स्वार्थ, 
सच्चाई देख कहार रहा!! 
                      उठा ध्वज तिरंगे कि, 
                      ये लाखो वीरों का शान, मस्तक! 
                      गर धरा वीर बनना है हमे, 
                      हर पथ पे चल गांडीव न धर!! 
पार्थ कर्म करते - करते थे, 
अर्जुन भारत के पुत्र बने! 
हम मे भी वो ही शाहस बल, 
हम अड़े रहें न पथ से डीगे!! 
                        उठा शस्त्र कर धरा ध्वस्त, 
                        मतभेदों का ये भ्रम सारा! 
                        गांडीव कहे जय भारत पूत्र, 
                       माध्व बन रथी करे नाज तेरा!! 
गा रही तरनुम देख पवन पथ, 
प्राकृती का भी विवेक यही! 
जो पृथक करे विचार धरा कि, 
कवियों का उल्लेख यही!! 

लेखक   :- अमित कुमार प्रशाद 
Writer  : - Amit Kumar Prasad

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