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“ध्यान” से साधें भावनाओं की बागडोर

Rishabh Mishra 30 Mar 2023 आलेख अन्य ध्यान, ध्यान का महत्व, ध्यान के फायदे 14360 0 Hindi :: हिंदी

                                                                                  “ध्यान” से साधें भावनाओं की बागडोर 

ऐसा प्रायः देखा जाता है कि जब कभी भी हम हतोत्साहित होते हैं तब हम स्वयं को ऊर्जाहीन अनुभव करते हैं तब हमें ये लगता है की काश कोई ऐसा हो जो हमको इस स्थिति से बाहर लेकर आये और पुनः पहले की तरह जोश से भर दे ऐसे में यदि कोई हमे प्रेरणा देता है तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने हमारे अंदर नयी प्राण शक्ति फूंक दी हो और हम रातों रात खुद को रूपांतरित करने के बारे में सोचने लगते हैं जैसा कि अक्सर देखा  भी गया है कि इसका असर एक दो दिन तक ही रहता है और जीवन की गाड़ी पुनः से उसी पटरी पर वापस आ जाती है ऐसा बार बार और कभी कभी तो जीवन भर होता ही रहता इसको कहते हैं बाह्य प्रेरणा जो की बहुत कम समय के लिए ही कारगर सिद्ध हो पाती है एक बात तो बिलकुल स्पष्ट है कि हम सभी मानव शरीरधारी हैं जिसके फलस्वरूप हमारे अंदर भावनाएं भी हैं तो स्वभावतः कभी हम खुश होंगे, ऊर्जा और जोश से लबरेज़ होंगे तो कभी हम दुःख और निराशा से भी घिरे होंगे यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है इससे हमें ज्यादा फ़र्क़ पड़ना भी नहीं चाहिए हाँ दिक्कत तब बड़ी हो जाती है जब हम दोनों में से किसी भी भावना के गहरे समुद्र में उतर जाते है जैसे कि जहाँ पर ख़ुशी जैसी कोई बात न हो वहां भी खुश दिखाई देना या फिर ख़ुशी के अवसरों में भी उदास मालूम पड़ना यदि ये उदासी और निराशा लम्बे समय तक बनी रहे तो इसको ही अवसाद या फिर डिप्रेशन का नाम दे दिया जाता है इसीलिए कहा भी गया है “अति सर्वत्र वर्जयेत” अति किसी भी चीज़ की अच्छी नहीं मानी जाती क्यूंकि बाद में ये किसी दूसरी गम्भीर समस्या का कारण बन सकती है इसलिए हमें  भावनाओं को चाहें वो अच्छी हों या बुरी तटस्थ होकर लेना चाहिए जैसा की महामना विदुर जी ने  राजा धृतराष्ट्र से महाभारत के उद्योग पर्व में  विदुर नीति के अंतर्गत कहा है,
सुखं च दुःखं च भवाभावौ च लाभालाभौ  मरणं जीवितं  च I
पर्यायशः सर्वमेते स्पृशन्ति तस्माद धीरो न च ह्रष्येन्न  शोचेत II4.47II

इसका अर्थ है की सुख-दुख, उत्पत्ति-विनाश, लाभ-हानि और जीवन-मरण ये बारी बारी से सबको प्राप्त होते रहते हैं इसलिए धीर पुरुष को इनके लिए हर्ष और शोक नहीं करना चाहिए I
भावनाओं का सीधा सम्बन्ध हमारे विचारों से है और जिसके विचार जितने संयमित और सकारात्मक होंगे वो उतना ही ज्यादा शांत होगा और विचारो को संयमित करने की विधि है “ध्यान”, ध्यान से हम अपनी स्वांसों से जुड़ जाते हैं जिससे विचारों का प्रवाह थमने लगता है और हम तटस्थता की स्थिति प्राप्त कर लेते हैं जिसे भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद गीता में स्थितप्रज्ञ की अवस्था कहा है ये अवस्था हमको आतंरिक प्रेरणा देगी जिसका असर दीर्घकाल तक बना रहेगा II
                                                                                                               

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