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पैसा ही सबकुछ नहीं-रखें हृदय को साफ

संदीप कुमार सिंह 03 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5585 0 Hindi :: हिंदी

(दोहा छंद)
पैसा ही सबकुछ नहीं,रखें सरस व्यवहार।
क्षमा दया भी पास हो,पाते रहिए प्यार।।

पैसा ही सबकुछ नहीं,पूर्ण करें कर्तव्य।
डूबे रहिए  स्नेह में,बने रहें द्रष्टव्य।।

पैसा ही सबकुछ नहीं,धर्म कर्म हो साथ।
रहे पुण्य का साथ तब,चमके मंजुल माथ।।

पैसा ही सबकुछ नहीं,साथी भी है खास।
तब जीवन में सुख रहे,खुशियाँ हो सब पास।।

पैसा ही सबकुछ नहीं,रखें हृदय को साफ।
करिए भला समाज का,गलती होगी माफ।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍🏼
जिला:_सास्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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