Saurabh Sonkar 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक प्रेम और नफ़रत प्रेम - नफ़रत द्वौ ऐसी चीज़ जेतनै बटब्या ओतनै बाढ़ै प्रेम बांटे से नफ़रत घटि हैं नफ़रत बाटै से प्रेम घटै सभ्यता मा लोग जीते है लोगों में संस्कृति जियै जीवन जीने की जो व्यवस्था है कला जो जीवन जीने की यही तो भैया धर्म है यही तो भैया कर्म है सभ्यता तो विकसित होती है संस्कृति ही इसमें बाधक है प्रगतिवादी है सभ्यता तेरी संस्कृति तो रुढ़िवादी है बदल रहा है वक्त रे साहब परिवर्तन स्वीकार करो ये प्रकृति ही सबका दाता है न्याय में इसके त्रृटि नहीं दुनिया ही जब गोल है तब सबकी बारी आयेगी उठो जागो तैयार रहो तुम इसको स्वीकार करो मानकर चले वो धर्म है चलकर माने विज्ञान है जीवन को संमृद्ध बना लो लड़ने का ये विषय नही है सब दृष्टिकोण का कमाल है सब मानसिकता का बवाल है सोंच बदल लो देश बदल लो तुम अपना दृष्टिकोण बदल लो प्रेम बांटने निकले थे तुम नफ़रतो में उलझ गए ले शिक्षा बदलाव करो तुम अपना उद्धार करो ...✍️✍️ सौरभ सोनकर 8255 0 Hindi :: हिंदी
प्रेम और नफ़रत प्रेम - नफ़रत द्वौ ऐसी चीज़ जेतनै बटब्या ओतनै बाढ़ै प्रेम बांटे से नफ़रत घटि हैं नफ़रत बाटै से प्रेम घटै सभ्यता मा लोग जीते है लोगों में संस्कृति जियै जीवन जीने की जो व्यवस्था है कला जो जीवन जीने की यही तो भैया धर्म है यही तो भैया कर्म है सभ्यता तो विकसित होती है संस्कृति ही इसमें बाधक है प्रगतिवादी है सभ्यता तेरी संस्कृति तो रुढ़िवादी है बदल रहा है वक्त रे साहब परिवर्तन स्वीकार करो ये प्रकृति ही सबका दाता है न्याय में इसके त्रृटि नहीं दुनिया ही जब गोल है तब सबकी बारी आयेगी उठो जागो तैयार रहो तुम इसको स्वीकार करो मानकर चले वो धर्म है चलकर माने विज्ञान है जीवन को संमृद्ध बना लो लड़ने का ये विषय नही है सब दृष्टिकोण का कमाल है सब मानसिकता का बवाल है सोंच बदल लो देश बदल लो तुम अपना दृष्टिकोण बदल लो प्रेम बांटने निकले थे तुम नफ़रतो में उलझ गए ले शिक्षा बदलाव करो तुम अपना उद्धार करो ✍️✍️ सौरभ सोनकर