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मैं रह जाऊं मूक धरा-कब घट जाए प्यार तेरा

Sudha Chaudhary 12 Sep 2023 कविताएँ अन्य 16212 0 Hindi :: हिंदी

कब घट जाए प्यार तेरा
मैं रह जाऊं मूक धरा
कभी जागरण में देखा
सपने तुम्हारे मन का
कहीं सहजता छाई थी
परियों सी चंचलता
कहीं निपुणता रोक रही थी
मेरे मन की रफ्तार
कैसे तेरे आह्वान पर
यह रह जाए धीर धरा।

आंख तुम्हारे मन में बैठी
रोक रही थी पथ को
जाना था उसे ओर डगर पर
आ पहुंचे हैं तेरे नगर में
कितना कठिन है भाव छुपाना
मां को अपने यूं झुठलाना
फिर भी साथी इस पर भी
कहती है वह बात खरा।

सुधा चौधरी
बस्ती

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