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लघुकथाःः घंटी यूं बजी

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 कहानियाँ अन्य Short Story 87198 0 Hindi :: हिंदी

तब लैंडलाइन फोन का जमाना था। एक दिन मेरा पड़ोसी मेरे घर आया और दर्दभरे लहजे में बोला, ‘‘मेरा फोन काफी दिनों से ‘डेड’ पड़ा है। ‘सूं-सां’ की आवाज तक नहीं आ रही है, लेकिन बिल है कि झटका दे रहा है। 15,550 रुपये का बिल। ये देखो। अंधेर मचा रखा है टेलीफोनवालों ने। जबकि मैं कई बार फोन खराब होने की सूचना दे चुका हूं।’’ 
पड़ोसी, पड़ोसी के काम न आए, तो पड़ोसी कैसे कहलाए? सो, मैं उठा और उनके साथ चल दिया टेलीफोन आफिस। 
वहां पहुंचा, तो देखा, अनेक टेलीफोन उपभोक्ता इन्हीं अंधेरगर्दियों को लेकर बाबू से हुज्जत कर रहे थे। 
पर, बड़े बाबू मानने को तैयार नहीं था कि उनकी बिल राशि ज्यादा है। इसलिए टालू अंदाज में रटा-रटाया राग अलाप रहा था, ‘‘देखते हैं और देख लेंगे’।                          
बाबू की बात से निराश होकर अब सबने साहब से मिलने का निश्चय किया। जब सब साहब के कक्ष में पहुंचे, साहब भीड़ देखकर चकरा गए। 
इसके पहले कि साहब हमारे आने का कारण पूछते, हममें से एक बोल़ा, ‘‘साहब, मेरा फोन महीनों से ‘डेड’ पड़ा हैं, लेकिन बिल आया है-9,900 रुपये। ...और बाबू है कि ‘देख लेने’ के सिवाय कोई दूसरा आश्वासन नहीं देता।’’
‘‘आपका फोन ‘डेड’ होकर भी इसलिए अच्छा है; क्योंकि उसमें अनर्गल आवाज नहीं आ रही है। मगर मेरा फोन दिन-रात घंटी की तरह ‘टन, टन, टन’ बजता रहता है। हमारा सोना और उठना-बैठना हराम हो गया है।’’ दूसरे ने भी अपनी  व्यथा जाहिर किया।
इस पर तीसरा बोला, ‘‘अजी, आपके फोन की घंटी बज भी रही है। हम तो घंटी सुनने के लिए तरस रहे हैं।’’
‘‘श्रीमान् आप ये बताएं कि ये फोन बनेंगे या नहीं; या फिर हम इन्हें यहीं पटककर जाएं।’’...और चैथे ने गर्मजोशी के साथ साहब के रूम में लैंडलाईन के डिब्बे को जोरों से पटक दिया।
इससे डिब्बे की छर्री-दर्री हो गई। फोन के पुर्जे-पुर्जे दिखने लगे। 
इसकी देखा-देखी बाकी लोग भी अपना-अपना डिब्बा पटकने ही वाले थे कि साहब कुर्सी से फौरन उठ गया।
फिर सबको हाथ जोड़कर अनुनय किया, ‘‘आपलोग अपने-अपने घर लौट जाएं। कष्ट के लिए क्षमा चाहता हूं। आपका फोन शाम-रात तक बनवाने की जवाबदारी मेरी रहेगी।’’
...और वाकई, शाम तक कमाल हो गया। सबका फोन ठीक हो गया। बिल भी कुछ दिनों में बदलकर वाजिब आ गया।               
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	अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायत’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar dewangan से सर्च कर व पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है और लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है।
			

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