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सबकी नींद हराम (दोहा छंद)

संदीप कुमार सिंह 22 Apr 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाजिक हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 8065 0 Hindi :: हिंदी

सबकी नींद हराम है,और सभी में भीति।
फिर भी डरना है मना,मानव की यह रीति।।

सबकी नींद हराम है,परेशान सब लोग।
कोविद भारी रोग है,पैदा करता सोग।।

सबकी नींद हराम है, हो जाते मजबूर।
नियति करे जो सो चले,रहे बुद्धि तब दूर।।

सबकी नींद हराम है,दुष्ट हुआ है काल।
खतरा चारों ओर है,नहीं चले अब भाल।।

सबकी नींद हराम है,दुश्मन है दिन रात।
रखिए सब जन हौसला,मिले भव्य सौगात।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍🏼
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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