Ashok Kumar Yadav 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 7347 0 Hindi :: हिंदी
कविता- प्रेयसी की प्रेरणा आरंभ और अंत में फर्क नहीं कोई। चिखकर एक बार मेरी आंखें रोइ।। आंसुओं का सैलाब बना है समंदर। अंतर्मन में घुट रहा अंदर-ही-अंदर।। नैसर्गिक बहार भी पतझड़ सा लगे। सुख के खुशनुमा पल में दुःख जगे।। निर्जन स्थान में आबाद हलचल नहीं। चुपचाप खामोश बैठा हूं यहीं कहीं।। अंधेरे में उम्मीद की कौंध गयी बिजली। पहचान तू खुद को कह गयी अंजली।। यही अंतिम अवसर है मत कर बर्बाद। ज्ञान पोथी को भाषा में कर अनुवाद।। तिमिर निशा के सपने में जीना छोड़ दे। पुरातन कुंठा, अवसाद बेड़िया तोड़ दे।। स्वयं बंधा असफलताओं के जंजीरों से। बदल हार को जीत में कर्म लकीरों से।। मन रूपी घोड़े को तीव्र गति से दौड़ा। शरीर रथ में नवीन बुद्धि पहिया घूमा।। साधना से कर दे जागृत तू ब्रह्म कमल। आत्मा का परमात्मा से मिलन अटल।। कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय कवि संगम इकाई के जिलाध्यक्ष।