Santoshi devi 30 Mar 2023 ग़ज़ल समाजिक माँ 43530 0 Hindi :: हिंदी
तुम सा बढ़कर ओर नहीं। मिलता कोई छोर नहीं।। खिलती अब जो देख सकू। आँगन तुम सी भोर नहीं।। हँसता जीवन छाँव तले। ऐसी मिलती ठौर नहीं।। खुद हिस्से का चैन गवां। कर ले तुझ सा गौर नहीं।। कुदरत हाथों साँझ बनी। क्यों माँ इस पर जोर नहीं।। बंधन क्या यह टूट सके। ममता कच्ची डोर नहीं।। भूल सकू क्या मातु तुझे। विस्मृत जग भी ढोर नहीं।। संतोषी देवी शाहपुरा जयपुर राजस्थान।