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हुनर

Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य हुनर 18901 0 Hindi :: हिंदी

हुनर 

बुलंदियों से भी बुलंद वनने के हुनर जानते है हम
गिर कर संभलना हमें खूब आता है 
पर्वत क्या आसमा को भी झुका सकते है हम
समंदर क्या भावर से भी हीरे निकल सकते है हम

पतझड़ को भी उपवन बना सकते है हम
चाँद ही नहीं उसका नूर भी चुरा सकते है हम
काली रात के घनघोर को भी सजा सकते है हम
तू कह के तो देखे हर फूल को कलि बना सकते है हम

हम इतने भी कमजोर नहीं की हालत से हर जाये  
ये बात अलग है की प्यार में ठगे गए है हम
बात मेरी नहीं थी बात उनकी हैं कैसे हरने देते
कोई क्या जाने मेरा जीने के अंदाज़ को
और अगर जानना ही है तो आओ और देखो मेरे फन कार को

ऐसा नहीं की सिर्फ बेबफां बही है इस में समय भी सामिल है
वो वेबफा हैं कहते है सभी शहर में
उनको क्या मालूम अपने बारे में उन्हें भी जानते है हम
उनकी तो आदत है दूसरो के घर झाकने की
और अपने घर की दरवाज़ा खुल्ला छुड देने की
बेबफा नहीं थे बो इस सहर में नए थे ये जानते है हम

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