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संगति का असर

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख अन्य Motivational 90737 0 Hindi :: हिंदी

संगति का दूरगामी असर होता है। इंसान अपनी संगति से जाना-पहचाना जाता है। व्यक्ति के उत्थान व पतन में उसकी संगति का अहम योगदान रहा करता है। 
अच्छी संगति से जहां सफलता, यश व कीर्ति की प्राप्ति होती है, वहीं बुरी संगति से असफलता, अपयश व अपकीर्ति मिला करती है। 
एक से उन्नति होती है, तो दूसरे से अवनति। एक प्रगति व सदगति का वाहक है, तो दूजा अपगति व दुर्गति का कारक।
	सामाजिक प्राणी के नाते मनुष्य को किसी-न-किसी के साथ की जरूरत होती है। साथी व संगति अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी। 
संगति उसके शख्सियत का रचयिता होता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण उसकी संगति से प्रभावित और प्रेरित होता है। संगति का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर गहरा और ताजिंदगी हुआ करता है।
	व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता उसकी संगति से चलता है। किसी का आचरण व चाल-चलन जानना हो, तो उसकी संगति को जान लो। 
उसके संग उठने-बैठने व रहनेवालों को जान लो। उसके पास-पड़ोस को जान लो। उसके मकान या निवासस्थान को जान लो। 
वह जिसके साथ रहता और उठता-बैठता है, उनका आचार-विचार व चालढाल अच्छा है, तो समझो कि उस शख्स का आचार-विचार व चालढाल भी अच्छा ही होगा। 
इसका उल्टा भी उतना ही सत्य है, जितना कि यह कटुसत्य। दुर्जन के साथ रहनेवाला कोई शख्स सज्जन नहीं हो सकता? 
अच्छी शख्सियत के निर्माणकर्ताओं को यह परम सत्य जितनी जल्दी समझ में आ जाए, उतना अच्छा है।
	जिस व्यक्ति के मित्र-यार या घर-परिवार के लोग अच्छे आचरण वाले होते हैं, वह उन्हीं के जैसा आचरण व व्यवहार वाला हुआ करता है। 
जिसकी संगति छली-कपटी, झूठे व मक्कार लोगों से है, उससे निश्छल-निष्कपट आचार, सत्य व सदाचार की उम्मीद करना बेमानी ही है?
	किसी अनजान व अजनबी नगर में किन्हीं अजनबियों को महज समययापन के लिए छोड़ दीजिए। उनकी आदत जैसी होगी, वे उन जैसों के करीब पहुंच जाएंगे। 
शराबी मयखाने में मिलेगा। खिलाड़ी खेल के मैदान में दिखेगा। कलाकार कलाकारों के संग रम जाएगा। जुआड़ी जुए के अड्डे में तकदीर आजमाएगा। 
साहित्यानुरागी साहित्यकारों के साथ दिख दिखेगा। राजनीतिबाज कहीं राजनीति का दांव-पेंच लगाता हुआ दिखेगा।
पहलवान किसी मल्लयुद्ध में किस्मत आजमाता मिलेगा। संगीतप्रेमी संगीतकारों की संगत में तल्लीन रहेगा। ईशप्रेमी किसी देवालय में भजन-कीर्तन में रमा मिलेगा। 
आशय है कि जिसकी जैसी आदत होती है, वह अपने जैसे लोगों की संगति जाने-अनजाने पा ही लेता है। 
वह लाख कोशिश करे, अपने द्वारा निर्मित स्वभाव से बच नहीं सकता। जिसकी जैसी धारणा होगी, वह अपने जैसे धारणकर्ता को खोजेगा। 
वह काजल की कोठरी में जाएगा, तो कालिख लगा हुआ ही पाएगा।
	यही कारण है कि जागरूक पालक व माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी संगति करने की हिदायतें देते रहते हैं। 
वे बुरी आदत व स्वभाव वाले बच्चों से दूर रहने की ताकीद करते हैं, ताकि वह उनकी संगति से अपना बिगाड़ न कर ले। भविष्य को अंधकूप में न ढकेल दे।
	ऐसे में, विवेकवान होने की जरूरत है। अच्छी संगति को धारण करने की आवश्यकता है। 
मनुष्य के विचार व कर्म को उसके संस्कार व परिवेश दिशा देते हैं। ये दिग्दर्शक होेते हैं। इसलिए उन्हें अच्छा संस्कार व अच्छा परिवेश देना चाहिए। 
इंसान अपने परिवेश की उपज है। जैसा उसका परिवेश होता है, वैसा वह बन जाता है। 
यदि उसे कल्याण का परिवेश मिलेगा, तो कल्याण के मार्ग पर चल पड़ेगा। यदि ध्वंस का मार्ग मिलेगा, तो ध्वंस के रास्ते चलेगा। 
आतंकवादी, अपराधी और हिंसक प्रवृति की विचारधारा इन्हीं मार्गों से आई है, जो दूषित परिवेश का कुपरिणाम है। 
इसे ही ब्रेनवाश कहते हैं, जो अच्छा या बुरा दोनों हो सकता है। 
जब तक यह संगति सुधरती नहीं है, तब तक मनुष्य की मानसिकता बदलती नहीं है। उसकी मानसिकता बदलने में उसकी संगति महत्वपूर्ण भूमिका निभाया करती है।
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