संदीप कुमार सिंह 02 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4774 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) बेकाबू जब मन रहे,चले न कोई जोर। देते रब को दोष तब,रखे भावना चोर।। चले न कोई जोर तब,मन की जब हो बात। पहले ही हम भाँप कर,कर लेते खुश गात।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....