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विक्षिप्त

Rabindra kumar mandal 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #hindi kawita#prem kahani# adhyatm#jine ki tammna# geet# bhojpuri 82396 0 Hindi :: हिंदी

( विक्षिप्त)

हमलोग विकसित  नहीं विक्षिप्त  हो रहे है,
अपने रिश्तों के कसौटी पर संक्षिप्त हो रहे है,

पहले साधन का अभाव  था , 
लेकिन सुंदर स्वभाव था,

पहले रिश्ते नातों का भंडार था, 
सभी को आपस में निश्वार्थ प्यार था,

आज धन के लिए अतृप्त हो रहे है,
हमलोग विकसित  नहीं विक्षिप्त  हो रहे है,

अपने रिश्तों के कसौटी पर संक्षिप्त हो रहे है

दूसरे के संस्कृति को अपनाने लगे है,
अतिथि देवो  भव भुलाने लगे है,

ऋषि मुनियों के उपदेश से दूर हो रहे है,
अश्लीलता में मगरूर हो रहे है,

आज अपने से अपनों ही कुपित हो रहे है,

हमलोग विकसित  नहीं विक्षिप्त  हो रहे है,
अपने रिश्तों के कसौटी पर संक्षिप्त हो रहे है,

हमलोगो के पास टेक्नोलॉजी का भरमार है 
न आपस में भाईचारा न ही प्यार है,

हम दो हमारे दो तक ही रिश्ता है,
बेटे - बेटे के बीच माँ बाप पिसता है,

ये कैसा विकास प्रेम की विपरीत हो रहा है,
हमलोग विकसित  नहीं विक्षिप्त  हो रहे है,

अपने रिश्तों के कसौटी पर संक्षिप्त हो रहे है
हमलोग विकसित  नहीं विक्षिप्त  हो रहे है,

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