भूपेंद्र सिंह 02 Feb 2024 कविताएँ अन्य गुरु गोविंद सिंह, बंदा सिंह बहादुर, चार साहिबजादे पंजाब वजीर खा 5462 0 Hindi :: हिंदी
कविता आगाज ए सरहिंद धीर हू,अधीर हूं, पीर हूं,शांति का मीर हूं, आन हूं,भान हूं,शान हूं,हिंद की कमान हूं ना शोर हूं,ना अघोर हूं,मैं तो कोई और हूं, सोया पड़ा जंगल में, शांति में मंगल में, पहचान ले कौन हूं, मोन हूं, अरविंद हूं, खाविंद हूं, पहचान ले गोविंद हूं, गुरु गोविंद हूं, गोविंद हूं।। पुत मेरे चार चार दिए सारे वार वार आंखे मेरी लाल लाल, मन में नहीं कोई भी मलाल कमान बंदे अब तू संभाल।। बन जा अब सिखों के इस पेड़ की डाल, पापियों को सजा देके अब कर दे कमाल, तूं है चेला गोविंद का अब मचा दे बबाल, काट दे पेड़ की डाल सी वजीर की हर चाल, मैने पिता वारी, मां बारी वार दिए चारों लाल, अब हिंद की कमान को बंदा सिंह तूं संभाल, कर कुछ ऐसा की आने वाली पीढ़ी का सीना गौरव से भर जाए, एक एक दुश्मन वजीर का आंखों में देख के खून मर जाए, आए अगर किसी सिंग पर चोट तो तूं हर विपदा को हर जाए, सिख कौम को बना दे इतना मजबूत की वजीर का गुरुर जर जाए।। लेकर सिख्या हो गया बंदा सिंह जंग को तैयार, हार जीत का समझा दिया था गोविंद ने सारा सार, कल की जंग में मचेगा बवाल हो जायेगी आर या पार, कंधे पर है बंदे के धुनूष और हाथ में कटार, इधर वजीर के मुंह से टपक रही है जीत की लार।। बंदा है तैयार जंग को लेकिन एक सवाल चिंता में डाल रहा, कौनसा है सही वक्त जंग का ये सवाल बना एक जाल रहा।। बंदा आया एकांत में और की आंखे बंद और लग गया ध्यान में, युद्ध का सही समय है कौनसा, सोचकर डूबा गुरु ज्ञान में, हुए प्रकट शहीद अजीत और जुझार चमकती शान में, बंदे को देखकर भावुक साहिबजादे पड़ गए हैरान में, फिर बंदे को हुआ कुछ आभास और वो बाहर आया ध्यान से।। बंदे ने जोड़े साहिबजादों के आगे हाथ और वो बोला चिंता में मैं पल रहा, आग सा मैं जल रहा, धुएं सा मैं सुलग रहा, पानी सा उबल रहा, एक अंतर्द्ध सा मन में चल रहा।। बोला अजीत युद्ध का सही समय है कौनसा प्रश्न है यही , जब आप है तैयार जंग के लिए, फिर सही समय है वही, बोला जुझार जब दिल में आग हो, मन में जुनू हो, हाथ में तलवार हो , आने वाली पीढ़ी को देना सुकू हो, जब बदले के लिए तड़प रही आपके जिस्म की रु हो, जब हर वक्त आपके सर पर मडरा रहा जीत का जुगनू हो, अगर शोले है भड़क रहे, वजीर के चेहरे के बदलने रंग के लिए, बोले दोनों साहिबजादे एक साथ, वही सही समय जंग के लिए, बंदे ने खोली अपनी आंखें, सब और गूंज पड़ा होगी जीत पुरुषोत्तम नवीन, मुस्कुराकर फिर चारों साहिबजादे, एक एक करके हो गए बंदे के बदन में लीन। बंदा लौटा ढेरे में गुरुज्ञान में जीने से, उठाई एक ईंट और लगा ली सीने से, ईंट में चिनवाया था वजीर कमीने ने, अब मिलेगा जीवन रस ईंट अमृत सा पीने में।। बंदा बोला अब चुन चुन कर बदला लूंगा, जलती हुई वजीर की जोत को अब मैं बुझा दूंगा, डाल उसे चिता पर आग से सुलगा दूंगा, चिलाया बंदा जोर से सरहिंद को मुरदागर बना दूंगा।। बंदा लेकर सेना सरहिंद में खड़ा हुआ वजीर खां के सामने शेर सा था अड़ा हुआ तंत्र मंत्र साधना से था जो बड़ा हुआ दुश्मन का खिताब वजीर के सर मढ़ा हुआ बंदा था गुरु गोविंद सिंह से पढ़ा हुआ जीवन और मौत के बीच में खड़ा हुआ आंखों में खून और चेहरे पर चमक थी देख के वजीर की झपक रही पलक थी बजे नगाड़े हुआ शोर, वजीर ने देखा करके गौर, बंदे की आंखों में था खून और चेहरे पर मौन, डर लगा वजीर को को जीतेगा आखिर आज कौन, बंदा गुस्से से मुट्ठी था विच रहा वजीर ने तोड़ा मौन वजीर बोला ये वजीर का सरहंद है झुक्के कर मुझे सलाम अगर अभी टेक देगा मेरे आगे घुटने तो बखस दूंगा तेरी जान, सुन वजीर मेरे गुरु को तूं पकड़ न सका, अपने पंजे में उसे जकड़ न सका, दो बच्चों के सर झुकाने में रहा तूं असमर्थ क्या मुझे हराने में हैं तू समरथ सिंग हू गुरु का, डरूंगा नहीं तुझे मारे बिना आज मरूंगा नही, वजीर बोला अभी भी वक्त है सोच ले, शाम तक तेरी सेना मेरे कब्जे में होगी, बंदा बोला सूरज डूबेगा आज तेरे मरने के बाद ही,तेरी रु भी मेरे कब्जे में होगी वजीर ने दांत लिए भींच और छोड़ी गहरी सांस, जैसे छोड़ता है शेर के सामने गीदड़ जीत की आस, बंदा लौटा सेना के पास लेकर जीत की आस दिखा दो सीगों आज की हम उस गुरु के चेले है जिसकी बाजू पर बैठा बाज है, अब हो चुका इस खूनी रणनीति का आगाज है, जिस्म में बदले की भावना और दिल में सुलग रही आग है।। जला दो वजीर को बदले की आग से, सरहिंद को कर दो आजाद काले दाग से। सिखों का हर गुरु हिंद की चादर होता है, एक एक सिख सवा लाख के बराबर होता है। सेना ने लगाई जयकार वाहेगुरु है साथ हर कदम पे, देख कर जुनून एक सिहरन सी दौड़ गई वजीर के बदन में, बजे नगाड़े शुरू हुई जंग, वजीर के चेहरे के बदल रहे थे रंग, सिखों की जीत का सिलसिला जारी है, हर एक सिख पड़ रहा सवा लाख पर भारी है, तलवारें चलती धड़ाधड़ खून सा बिखर रहा, देख कर वजीर कर अपनी फिक्र रहा, बंदा खड़ा दूर आग सा सुलग रहा, वजीर करके आंखें बंद पानी सा उबल रहा।। आया वजीर का सिपाही और बोला कुछ जोर से, सिख हो गए हावी, अब नहीं आयेगी मदद किसी और से, अब देखा वजीर ने थोड़ा ध्यान से और गौर से, बोला मदद की जरूरत अब पड़ने वाली उसे है, उस बंदे की सेना में हमारे सिपाही बदल के वेश घुसे हैं, ताना वजीर ने हरा झंडा एक सिंह ने दिया उस पर ध्यान, बोला मुगल हो गए हावी भागो बचाकर अपनी जान, सभी सिंग है डर के मारे भाग रहे, वजीर की जीत के सूरज से जाग रहे, बंदा खड़ा दूर शांत सा, भय में आक्रांत सा, आया फतेह सिंह बोला,नए जुड़े सिपाही सारे भाग रहे, वो मुगल अब जीत के झंडे है लबालब गाड़ रहे, वो वजीर सारा खेल है अब पलट रहा, हमारी छाती पर सांप सा लिपट रहा, बंदे ने भरी गहरी सांस और कर ली आंखे बंद, एक जोत सी नजर आ रही है उसे मंद मंद, प्रकट हुए गुरु गोविंद सिंह लेकर जीत की पुकार, आज नहीं होगी तेरी बंदे हर हालत में हार, कान खोल के सुन बंदे, करने है तुझे कर्म चंगे, खून की हर एक बूंद का तुझे कर्ज चुकाना है, मादवदास होने का आज तुझे फर्ज निभाना है, भूल मत तूं एक शिकारी था, पड़ता सब पर भारी था, मादा हिरनी को अपने हाथों से तूने मारा था, पेट में बच्चा भी उसके पूरा सारा था, तड़प देख न सका, साधु का वेश तूने धारा था, आज भी खड़ा सामने वजीर आक्रोश में, बस फर्क इतना था चलाया तीर तूने निर्दोष पे, आज उस हिरण का कर्ज तुझे चुकाना है, एक बाज की तरह तुझे जीत के लिए जाना है, याद कर बंदे तूं लक्ष्मण दास है, सिखों की तूं आस है, वजीर की चल रही अभी तक सांस है, सवा लाख से एक लड़ाऊं, तब गोविंद सिंह नाम कहाऊं, बंदे ने खोली आंखे और भड़क उठा आग में, डालूंगा हाथ आज मैं उस शेर की मांद में, आज सोने से पहले जब कोई ख्वाब लूंगा, पहले सरहिंद में हुए एक एक पाप का हिसाब लूंगा, खून के हर कतरे को मेरे गुरु साफ कर देना, जब वजीर हो मेरे सामने तो गुरु मुझे माफ कर देना, मुझे माफ कर देना, बोला बंदा फतेह सिंह जी आखिरी सेना को कहो बनकर अंगारे टूट पड़ो, उस जालिम वजीर पर आज बनकर आग की बारिश फूट पड़ो, अंदर से बंदा था अब आग सा भड़क उठा, अब बंदे का खंडा खड़क उठा, खड़क उठा, हुई लड़ाई , मुगलो की धुलाई, हाथी पर बैठे पर वजीर की बारी आई, हाथ में लिया धुनुश बाण और याद किया वो शिकारी रूप, निशाने पर था हाथी पर बैठा जालिम वजीर कुरूप, चलाया तीर वजीर आ गिरा नीचे किसी पेड़ सा, बन गया था वहां पर एक तीर कमान का खेड़ सा, वजीर और बंदे ने चलाई तलवारें लगातार, अंतर्मन से कांप रहा था वजीर बार बार, बंदे ने चलाई तलवार वजीर का वार था रुक गया, बंदे के सामने चुपचाप था वो झुक गया, बोला बंदा वो अंतर्जामी है, नहीं तो शहीद अपने पुत चार नहीं करता, कान खोल के सुन ले जालिम , सिंग कभी निहत्थे पर बार नहीं करता, बंदे ने अपनी तलवार पकड़ा दी वजीर के हाथ में, खुद खड़ा निहथा जीत की आस में, वजीर ने चलाई तलवार मगर बंदे ने एक मुक्का था ऐसा जमा दिया, तलवार और वजीर गिरे दूर, धड़कनों की थमा दिया, बंदे ने कमरबंद पर लिपटा बटुआ था खोला, निकाली एक ईंट और फिर जोर से था बोला, ये ईंट है उसी दीवार की जिसमे तूने मेरे गुरु के बच्चों को चिनवाया था, सिखों की बहादुरी को उन दोनों ने तुझे अंगुलियों पर गिनवाया था, आज तुझे इस ईंट का कर्ज चुकाना है, और मुझे सिंग होने का फर्ज निभाना है ईंट से बंदे ने वजीर पर किया वार एक नहीं अनेकों बार, पीछे से वजीर के एक सिपाही लगाई बंदे को पुकार, वजीर था जमीन पर मृत सा पड़ा हुआ, बंदे को उलझा हुआ देख के तेजी से खड़ा हुआ, उठाया तीर कमान और लिया बंदे पर तान, बंदा था लड़ने में मशगूल नहीं था, वजीर पर ध्यान, घोड़े पर बैठे फतेह सिंह ने दौड़ाई वजीर पर नज़र, फिर तूफान सा दौड़ पड़ा उसके ऊपर, वजीर ने धनुष के कमान को है खींच लिया, फतेह सिंह ने अपने जबड़ों को है बींच लिया, बोला फतेह वजीर खां आज तूं किस किसको मारेगा, अफसोस इस फतेह सिंह से भी आज तूं हारेगा, वजीर ने बदला निशाना और चलाया तीर फतेह पर, झुका फतेह नीचे तीर गुजर गया पास से, और लगा जाकर वजीर की जीत की आस में, चलाई फतेह ने तलवार वजीर का सीस था कट गया, रणभूमि का कोना कोना तीरों से था फट गया, सारे मुगल बचाकर भागे थे अपनी जान, बंदे ने आंखें बंद करके लगाया था ध्यान, बंदे की जीत के ऊपर चारों साहिबजादो की छाया थी, पर सारी दुनिया जानती थी, ये तो गुरु गोविंद सिंह की माया थी, गोविंद सिंह की माया थी, माया थी।। To be continue...। नेक्स्ट चैप्टर " सफर ए सरहिंद।" ✍️ B.s. singh.....रामगढ़िया।