DINESH KUMAR KEER 01 Feb 2024 शायरी समाजिक 3571 0 Hindi :: हिंदी
फ़िसलती ही चली गई, एक पल, रुकी भी नहीं; अब जा के महसूस हुआ, रेत के जैसी है ज़िंदगी।
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