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न मोटर गाड़ियों का शोर था न मोबाइलों का दौर था-वो वक़्त ही कुछ और था

SHAHWAJ KHAN 11 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मोटर गाड़ी, मोबाइल, दौर, तौर, देहसतगर्द, नफरत की बोली 15082 0 Hindi :: हिंदी

न मोटर गाडियों का शोर था न मोबाइलों का दौर था 
कुछ बात थी उस वक़्त में वो वक़्त ही कुछ और था।
न तो नफरत की बोली थी न देहशतगर्दो की टोली थी
ईमान दिलों के पक्के थे खुशियों से भरी हर झोली थी।

न बेशर्मी का आलम था न बदकारी का तौर था

कुछ बात थी उस वक़्त में वो वक़्त ही कुछ और था।

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