Rameez Raja 08 Feb 2024 कविताएँ समाजिक क्यों तू जी रहा है अकेला ? 10706 0 Hindi :: हिंदी
जीना चाहता था मैं एक ऐसी दुनिया में, जहां लोग छल-कपट से परे हो, समझे सभी को अपने, बनकर जिए और समझे अपने । सोचता-सोचता बस बनकर रह गया मुसाफ़िर अकेला, पहचाना और जाना लोगों में है स्वार्थ भरा, एक दूसरे से करे छल-प्रपंच, न है किसी में आपसी साजे धारी, बस लगे है सभी अपना ही उल्लू सीधा करने में सारी, हैं यह कैसे जन-मानस अब सारे। कहूं सभी से ओ ! मनुष्य रुक जा ज़रा, ठहर जा , संभल जा, है अभी भी आशाएं, एक दिन जब कोई नहीं रहेगा तेरे संग, न देगा कोई तेरा साथ, याद आएगी तब तुझे लोगों के रिश्ते-नाते, सोचेगा कि क्यों तू सिर्फ बनकर रहगया अकेला इन सब में । अपने स्वार्थ सिद्ध करने में लगा हुआ है, आखिर कब तक रहेगा तू ऐसे अकेला , पहचान और देख अपने अस्तित्व को और जाग कर बढ़ आगे चल, समझे सभी को अपना और बन सबका अपना प्यारा।