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वफा से बेवफा

संदीप कुमार सिंह 02 Apr 2024 कहानियाँ समाजिक मेरी यह कहानी पाठक लोगों को काफ़ी पसन्द आयेगी. 1058 0 Hindi :: हिंदी

दोनों  में  प्यार  की  आग  इतनी  तेजी  से  जल  रही  थी  की  यह  बात  उन  दोनों  के  चेहरे  से  झलक  रही  थी . मामला  कुछ  यूँ  है  रूपा  और  राजू   जब  कालेज  में  पढ़ाई  कर  रहे  थे . दोनों  इंटर  के  ही  स्टूडेंट  थे . कालेज  था  पटना  का  B.N  कालेज. कालेज  प्रांगण  में  यूँ  ही  दोनों  की  नजरे  चार  हो  गई  थीं . पता  नहीं  पहली  बार  की  इस  नयन  तकरार  में  क्या  गजब कशिश  थी, दोनों  के  दिल  में  कुछ- कुछ  होने लगा  था. 
रात  दोनों  के  लिए  बड़ी  ही बेचैनी भरी  थी, नींद  आंखों  से  गायब  थी  और  दोनों  के  आँखों  में  एक- दूजे  की  तस्वीर  उभर- उभर  कर  आ  रही  थीं. खैर  रात  बीती  सुबह  हुआ फिर  कालेज  जाने  का  वक़्त भी आया.आज  दोनों  ही  और  दिन  के  अपेक्षा  ज्यादा  ही  आकर्षक  लग रहे  थे. फिर  आज  कालेज  प्रांगण में  दोनों  की  नैना  टकराई  और अनायास ही मुस्कान दोनों  के लबों पे  थिरकने लगी. राजू  साहस  और  खुशी  मन  से  रूपा  के  तरफ  आगे  बढ़ा. हाय- हैलो  के  बाद  दोनों  एक- दूसरे  से  परिचय  कर  लिए. अब  यह  सिलसिला  लगातार  चलने  लगा. अब  ये  दोनों  रोज  मिला  करते  और  और  अपने  प्यार  का  इजहार  किया  करते. 
धीरे-धीरे  यह  बात  हवा  में  मिली  खुशबू  की तरह  फैलने लगी. ईन  दोनों  के  प्यार  की  कहानी  से  सारे  लोग  वाकिफ़  होने  लगे.
ऐसे  में  इन  दोनों  का  इंटर  की  पढ़ाई  भी  पूरी हो  चुकी  थीं. अब  ये  लोग  और  भी  फ्री  हो  गए  थे  मिलने  के  लिए. दोनों  खूब  मिला  करते  और  सैर-सपाटे,सीनेमा ,पार्क  आदि  स्थानों  पर खूब  घुमा  करते  थे.
रूपा  अब  शादी  के  लिए  राजू  पर  दबाव बना  रही  थी  और  कह  रही  थी  मुझे  अपने  घर  ले  चलो.
राजू  को  भी  कोई  दिक्कत  नहीं  था. एक  दिन  वह  रूपा  को  घर  लेकर  आया  और  अपने  मम्मी- पापा   से  मिलाया. बातचीत  का  सिलसिला  भी  शुरू  हो  गई. राजू  की  मम्मी  रूपा  से  उसका  परिचय  लेने  लगी. यह  परिचय  की   बात  राजू  का  पापा  भी  सुन  रहे  थे. मम्मी- पापा  दोनों  को  लड़की  पसंद  आई. शक़्ल- सूरत  वो  व्यवहार आदि  सभी.
राजू  के  पापा  बोले  भई  अब  कुछ  चाय- नाश्ता  भी  तो  हो  जाए . राजू  की  मम्मी  चल  दी  किचन  की  और  तो  रूपा  झट  से  खड़ी  हो  गई  और  बोलने  लगी  मम्मी  जी आप  क्यों  कष्ट  करेंगे  मेरे  लिए  आप  लोग  बैठिए  और मुझे  किचन  दिखा  दीजिए  मैं  ही आपलोगों के  लिए  चाय- नाश्ता  बनाकर  लाती  हूं.राजू  सहित  मम्मी- पापा  सब हसने  लगे.और  रूपा  का  स्वागत  मेहमान  की  तरह  किया गया. कुछ  दिन  बाद  दोनों  परिवार की सहमती  बाद  रूपा और राजू  की शादी  करा  दी  गई. अब  रूपा  दुल्हन  बन राजू   के  घर आ गई .
रूपा और  राजू  अभी जिन्दगी  के  हसीन  दौड़  से  गुजर   रहे  थे. दोनों  का  वैवाहिक   जिंदगी  बहुत  ही   खुशी  से चलने  लगी  थी. साल  भर  के  दरमियान  दोनों  को  एक लड़का  भी  हुआ. जिसका  नाम  दोनों  ने  राज  रखा.
मियां-बीबी  दोनों  एक  दूसरे  के  प्रति  काफी  वफादार  थे. दोनों  एक-दूसरे  का  ख्याल  भी  रखते  थे.
लेकिन-लेकिन  अचानक  से दोनों  की  जिन्दगी  में  एक भूचाल  सी  आ  गई. एक-दूसरे  पर  बेवफ़ा  होने  का इल्ज़ाम  लगाने  लगे  थे  रूपा और राजू.
हुआ  कुछ  यूं  था  की अब राजू  की  जिन्दगी  में  काफी परिवर्तन  आ  गया  था. पहले  वाला राजू  अब  नहीं  रहा  था. काम  पर  से  राजू   घर  देर  लौटता  था. और  बात- बात में  रूपा  से  झगड़ा  भी  कर  लेता  था. रूपा  बड़ी असमंजस  की  स्तिथि  से  गुजर  रही  थी. करूं  तो  करूँ  क्या  जाऊँ  तो  जाऊँ  कहाँ?वह  राजू  में  आए  भयानक बदलाव  से  काफी  दुःखित  थी.दरअसल  राजू  प्यार  में बेवफ़ा  हो  गया  था. शादी- शुदा  होने  के  बावजूद  भी  फिर से  चक्कर  एक  गैर  लड़की  से  चला  दिया  था. जिसका नाम  कामिनी  था.कामिनी  एक  मोहिनी  लड़की  थी. जिसने बड़ी  चालाकी  से  राजू  को अपने  माया जाल  में  फंसा  ली थी. राजू  कम्पनी  में  प्रबंधक  पद  पर था. राजू  को  अब कामिनी  के  सिवा  कुछ  सूझ ही नहीं  रहा  था. कामिनी  ने  इस  कदर  उसे  अपने   रूप- रंग- रस  में  बाँध  ली  थी  की अब  अप्सरा  भी  उसे  कामिनी  से  जुदा  नही  कर  सकती थीं.अब  तो  राजू  घर आना भी भूल  गया  था. वह  घर  अब आ  ही  नहीं  रहा  था. इधर  रूपा  तथा  उसकी  सास- ससुर सब  परेशान  हो  गए  अब  करें  तो  करें  क्या? और  एक राजू  था  की  कोई  भी  बात  उसके  जेहन  में  उतर  ही  नहीं रहा  था.माँ- बाप  के  समझाने  पर  भी  राजू  कुछ  नहीं समझा  और  उसने  कामिनी  से  शादी  कर  कम्पनी  के  ही क्वार्टर  में  रहने  लगा.
अब  तो  इस  बात  का  कई  साल  हो  गया  है. राजू  और कामिनी  के  अभी  दो  बच्चे  हैं. अंत  में  रूपा  और  राजू  का  एक दूसरे  से  तलाक  हो  गया  था.
लेकिन  रूपा  राजू   के  ही  माँ- बाप  के  साथ  उसी  के  घर में  अपने  बेटे  राज  के  साथ  आजीवन  रहने  की  सौगंध खा  ली  थी. 
वह  माया  से  निकल  कर  एक  साध्वी  की  जिन्दगी  जीने लगी  थीं. जो  कि  एक  मिसाल  बन  गया  था.रूपा  के यश-कीर्ति और  वैभव  से  दूर-दूर  के  लोग  प्रभावित  थे.
(शिक्षा:-लकड़ी  हों  तो  रूपा  जैसी  जो  किसी  भी परिस्तिथि  से  सामना  करने  के  लिए  तैयार  हों. और देश-दुनिया  के  लिए  एक  नज़ीर  बने.)
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह ✍️ 
जिला:-समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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